सामाजिक

परीक्षा से डर कैसा

परीक्षा निकट आते ही बच्चों के मन में तनाव छा जाता है। फिर परीक्षा चाहे मासिक टेस्ट हो, तिमाही हो या छमाही हो। वार्षिक परीक्षा तो वर्षभर की पढ़ाई का मूल्यांकन समझा जाता है, इसलिए छात्र दिनरात अत्यंत दबाव में रहते हैं। वे खाना, सोना, हँसना – मुस्काना, खेलकूद आदि सब भूलकर केवल पढ़ाई पर जुट जाते हैं।

मन के भीतर से दूर करें परीक्षा का डर 

       छात्रों के मन के भीतर परीक्षा का डर और तनाव छिपा रहता है। इनको दूर करने के लिए माता-पिता और शिक्षकों को लगातार प्रयास करना चाहिए। इसके लिए समय-समय पर बच्चों से बातचीत करके, समझा कर तथा अच्छी सीख देकर उन्हें प्रेरित – प्रोत्साहित करना चाहिए। उनकी जिज्ञासाओं को शांत करते हुए, उनमें बनने वाले तनाव के कारणों को दूर करना आवश्यक है। इससे उनमें सकारात्मक परिवर्तन, उत्साह, ऊर्जा एवं जिजीविषा की ज्योति जाग्रत होगी।

परीक्षाबनेपर्व 

 परीक्षा छात्रों को एक अभिशाप न लगे तथा तनावमुक्त लगे, इसके लिए वे एक पर्व की भाँति परीक्षा – आयोजन में भागीदारी करें। इससे वे परीक्षा के परिणाम को सफल जीवन से जोड़ सकेंगे और भविष्य में संघर्षों से बिना डरे सामना करने में सक्षम बन सकेंगे।

शिक्षक और छात्र में हो स्नेहिल नाता 

शिक्षक और छात्र के बीच केवल पढ़ाई का नाता नहीं होना चाहिए, अपितु शिक्षक को एक संरक्षक की भाँति निरंतर प्रगाढ़ नाता बनाए रखना चाहिए। चूँकि छात्र का अधिकांश समय शिक्षक के सानिध्य में व्यतीत होता है, इसलिए दोनों के बीच पिता – पुत्र जैसा सामंजस्य होना चाहिए। शिक्षक का कार्य केवल पढ़ाई और उसकी जांच करना भर नहीं है, अपितु छात्रों के जीवन को सँवारना और सामर्थ्य देना भी है। अतः उसका व्यवहार अत्यंत उदार,स्नेहिल और संवेदनशील हो, जिससे प्रत्येक छात्र निःसंकोच अपने विषय संबंधी कठिनाइयों का हल पा सके।

        उक्त विषय में कुछ महत्वपूर्ण विंदुओं पर गंभीरता से विचार एवं क्रियान्वयन आवश्यक है, इन पर छात्रों के साथ – साथ अभिभावकों को भी ध्यान देना अपरिहार्य है –

 – परीक्षा में छात्र स्वयं से स्पर्द्धा करें, दूसरों से नहीं। परीक्षा के लेकर उपजे तनाव को झेलने के लिए स्वयं को सामर्थ्यवान बनाएँ तथा बेहतर प्रदर्शन के प्रयास करें। मित्रों के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रखें, उनसे ईर्ष्या – द्वेष का भाव प्रदर्शित न करें।

-छात्र छोटी-छोटी गलतियों से बचें, जैसे परीक्षा में नए कपड़े पहनने से बचें, नया पेन प्रयोग न करें। परीक्षा शुरू होने तक पुस्तकों से चिपके न रहें। परीक्षा के पूर्व ऐसा कुछ न खाएँ जिससे शरीर को कष्ट हो।

-परीक्षा प्रारंभ होने से पहले मन को शांत रखें। परीक्षा – कक्ष में शांति से बैठें। मित्रों के साथ हँसी – ठहाके लगाएँ। अपनी डेस्क या मेज की जांच कर लें कि कहीं कोई नकल की पुर्जी तो नहीं रखी है या कुछ आपत्तिजनक लिखा तो नहीं है। अब यदि आपके हाथ में प्रश्नपत्र आएगा, तो आपको तनाव नहीं होगा।

-शिक्षक सभी छात्रों के साथ समान जुड़ाव रखें, जिससे वे अपनी बात उनके सामने खुलकर रख सकें और उनकी कमजोरी को पहचान सकेंगे।किसी भी क्षेत्र में छात्रों के अच्छे प्रदर्शन की सराहना की जानी चाहिए, जिससे उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न हो। 

-छात्र अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहें, जैसे मोबाइल की बैटरी चार्ज करने के लिए सजग रहते हैं। प्रतिदिन कुछ समय अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अवश्य दें।

-परीक्षा की तैयारी के अंतर्गत नित्य लिखने का अभ्यास अवश्य करें। इससे लिखने की क्षमता बढ़ेगी और सारे विषय भी ठीक प्रकार से तैयार होंगे।

-पूरी नींद अवश्य लें। मोबाइल फोन का प्रयोग बंद कर दें या समय को नियंत्रित कर लें। रात – रातभर रीलें देखने या वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि  उपयोग से नुकसान होता है, नींद कम आती है, आलस रहता है, किसी काम में मन नहीं लगता। तन – मन को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त नींद लेना आवश्यक है।भोजन करते समय गैजेट्स का उपयोग स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। 

-विषयों के चयन में स्वयं पर भरोसा रखें। माता-पिता को अपने प्रति भरोसे को कमजोर न होने दें। उनके साथ सारी बातों को साझा करें।

-अपनी प्राथमिकताएँ स्वयं तय करें। सही – गलत पहचानने का विवेक जाग्रत करें। किसी कारण गलती हो भी जाए तो निराश न हों, अपितु उससे सीख लें। स्वयं निर्णायक बनें।

-माता-पिता बच्चों के सामने स्वयं को इतना सहज रखें कि वे अपने मन की बात के साथ अपनी समस्याओं को साझा कर सकें।यदि बच्चा कुछ दिनों से गुमसुम दिख रहा हो, तो उसका कारण जानकर, समस्या का समाधान करें। 

-बच्चे के टाइम टेबिल में पढ़ाई के अतिरिक्त समाचार पत्र पढ़ने, घर के बाहर के खेल खेलने, मोबाइल देखने तथा टीवी देखने का समय भी अंकित होना चाहिए। अंकों की दौड़ में अपने बच्चे को दौड़ाने के स्थान पर एक सुलझा हुआ मानव बनाना अधिक श्रेयस्कर है।

-बच्चे माता-पिता से झूठ न बोलें। उनसे तो कह दिया कि आप चिंता न करें, वे रात को पढ़ लेंगे , किंतु उनके सोने के बाद, स्वयं सो जाते हैं। इससे एक तो विश्वास कमजोर होता है, दूसरे पढ़ाई नहीं हो पाती है। आप कहीं को बताकर कहीं और चले जाते हो, तो यह भी बुरी बात है। 

– माता-पिता बच्चों से नकारात्मक व्यवहार न करें। वे भूल से भी बच्चों से न कहें कि तुम पढ़ाई में कमजोर हो, नाकारा हो, आलसी हो, तुम्हें कुछ आता – जाता नहीं है, इससे बच्चों का मनोबल गिरता है और धीरे-धीरे वे अच्छी बातों को भी अनसुना कर देंगे। 

-सदैव अच्छे और तेजस्वी बच्चों से मित्रता रखें, उनसे आगे बढ़ने की सीख एवं प्रेरणा लें । 

-पढ़ाई नियमित जारी रखें, इससे परीक्षा के पहले ही तैयारी पूरी हो जाएगी। फिर केवल पाठ्यक्रम दोहराने की आवश्यकता रहेगी, रटने की नहीं। कोई नया पाठ परीक्षा के समय न पढ़ें। 

-परीक्षा – कक्ष में चिंतामुक्त होकर जाना चाहिए। वहाँ कहीं भी कैमरे लगे हों या कोई भी जाँच करने के लिए आए, उससे डरने या चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। इसे स्वाभाविक प्रक्रिया मानें। 

-यदि कोई मित्र आपसे आगे चला गया है और वह हर विषय में अच्छे अंक ला रहा है, तो उससे ईर्ष्या न करें। उसकी जगह स्वयं पर ध्यान देने और परिश्रम से पढ़ाई करने की आवश्यकता है। 

-पढ़ाई के साथ-साथ अपने शरीर पर भी ध्यान दें। प्रतिदिन व्यायाम से मन और शरीर स्वस्थ रखें, सादा और पौष्टिक भोजन सही समय पर करें, दिनचर्या नियमित रहे, नहीं तो बीमार पड़ने पर परीक्षा गड़बड़ा सकती है। 

           पढ़ाई में परीक्षा एक अनिवार्य प्रक्रिया है।  छात्रों को समय-समय पर अपना मूल्यांकन करने के लिए परीक्षा आवश्यक है। माता-पिता और शिक्षकों को सामूहिक रूप से उनके सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना चाहिए। बच्चों में आत्मविश्वास की कमी चिंता का विषय है, इससे अवसाद घेर लेता है। अतः छात्रों के आचरण के गहन आत्म – विश्लेषण से यह समस्या दूर हो सकती है, इसके लिए माता-पिता और शिक्षक अपना दायित्व समझें तथा बच्चे को विश्वास में लेकर उन्हें सदैव प्रेरित – प्रोत्साहित करते रहें। 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र 

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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