कविता

सम्भावना

जहां हो कच्चापन

सम्भावनाएं होती हैं

अपार वहीं पर ।

उग आता है बीज

जरा सी नमी पाकर

उस अंकुरण में होता है

जीवन का प्रस्फुटन

अलिखित

अलक्षित

अदृश्य

सतह का गीलापन

सोख लेता है,

हमारे आंसू

आंखों की नमी

गीली मिट्टी में

उग आती है

दूब घास भी

भरपूर कोशिश के बाद

कहां हो पाता है

तल समतल।

संगमरमर की चमकती

सुनहरी फर्शों पर

कोई कहां उगा सकता है

एक पूरी कायनात

जिन्दगी की।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890