कविता

माँ शारदे की नित्य आराधना

हे हंसवाहिनी, ज्ञानवादिनी माँ
इस मूढ़ पर भी कुछ ध्यान दो,
मेरी अज्ञानता का हरण कर लो
विद्या ज्ञान का अमिट वरदान दो।

पूजा पाठ का मुझे ज्ञान नहीं
पूजा, आराधना का भान नहीं?
अब तू ही बता मेरी माँ शारदे
कैसे करुँ तेरी साधना,उपासना।।

बुद्धि, ज्ञान की देवी माँ शारदे
मेरी भूल को माफ करो माँ शारदे,
वाणी, बुद्धि ,विवेक के  भंडार से
मेरी खाली झोली भरकर माँ तार दे।

कैसे करुँ मैं तेरा गुणगान माँ,
इसका भी अब बोध करा दो माँ,
मेरी कुंद बुद्धि विवेक में माँ,
नवचेतना का संचार करो माँ।। 

माँ! एक विनय और भी सुन लो,
चरण शरण में सिर झुकाए खड़ा हूँ,
नित्य की आराधना यही है मेरी,
यही भाव अर्पित करने आया हूँ।

मानता हूँ बुद्धि विवेक से हीन हूँ मैं
इसलिए तो मुझ पर भी ध्यान दो माँ,
मुझ पर करुणा की बरसात करो माँ
मुझ अज्ञानी का कल्याण करो माँ।

नादान बालक की इस याचना पर
अब तो तनिक सोच विचार करो माँ,
कर सकूँ मैं भी नित्य आपका वंदन,
छोटा सा वरदान दे उद्धार करो मााँ।

*सुधीर श्रीवास्तव

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