हास्य व्यंग्य

बस कैसे न कैसे करके ऊंगली करना है

अब बात यों हुई कि हम तो सीधे चुपचाप बैठ , अपने हर एप पर घूम रहे थे एप कहें तो हर वेबसाइट जिस पर हमारी जिंदगी में आनंद , सुकून के कुछ पल मिलते हैं बिताने के लिये तो हम कहॉं थे अरे हॉं ! मार्निंग वॉक कर रहे ज़रा सुबह-सुबह सोशल मीडिया पर यही समझ लो ।

अब हुआ यूं कि हम चलते-चलते सभी की पोस्ट देख रहे थे तभी हर बार की तरह इस बार भी घुमा फिरा के फिर एक पोस्ट पर नज़र पड़ गई । देखा , पढ़ा , सुना उस पोस्ट के हर एक विवरण को ध्यान से फिर सोचा चलो भाई इसी पोस्ट पर दूसरों की तरह ज़रा अपने भी विचार हम लिख दें । जैसा की पहले के लेख मैं मैंने बताया था कि फर्श से अर्श तक जाने वालों से सीखो , जलने कुढ़ने से अपना ही खून जला खुद का ही नुकसान न करें । ठीक उसी तरह से मिलते जुलते भावों से भरा लेख है ये मेरा बस थोड़ा बहुत अंतर है । अब क्या करें मेरा मन ही ऐसा है कि कोई किसी को जबरदस्ती ऊंगली करे तो थोड़ी फोकट की राय मैं भी दे देती । अरे फोकट की राय सुनकर यदि इक्का-दुक्का समझ जाए तो इसमें कोई बुराई थोड़ी है बस समझाना हमारी कलम का कर्तव्य, समझना न समझना ऊंगली कर्ताओं का कर्तव्य । अरे भाई क्यों किसी को ऐसे नहीं तोड़ सके तो वैसे तोड़ने की कोशिश कर रहे ? बहते पानी के दरिया को कोई फर्क नहीं पड़ता बीच में पत्थर आने पर वो तो उस पत्थर के ऊपर या साईड से कहीं से भी रास्ता बना के आगे बढ़ता ही जाएगा । वो तो आगे बढ़ जाएगा पर ऊंगली कर्ता का क्या वो तो वहीं अपना सा मुंह लिए खड़ा ही रह जाएगा धरा का धरा अपना सा मुंह लिए ये सोचेगा खुद के मन में ही , की अरे मैं फलाने को इतना कुछ सुना रहा पर फलाने के कान पर तो जूं भी नही रेंग रही । तो चलिए बताती हूं की असल में मेरी नज़र किस गलियारे में और कस तरह के पोस्ट पर गयी थी । दरअसल मेरी नज़र गई एक काफिले के ऊपर बनाए गये विडियो पर और उस विडियो पर कसे गये कटू शब्दों से भरे व्यंग्य पर । सोचा चलो फिर इन कटू शब्दों में सौम्यता भर इसे ही स्याही बना अपनी कलम में भर कागज़ों में उतार दूं ध्यान देने योग्य बात पुनः कह रही कटू शब्दों में सौम्यता का रसपान भर स्याही बनाना । 

चलो तो उस विडियो के अंतर्गत एक काफिला दिखाया गया , हो सकता है वो काफिला बहुत ही अमीर आदमी का हो जैसे अंबानी जी , टाटा जी , बिड़ला जी या हो सकता है किसी भी उच्च अधिकारी का हो या हमारे देश मतलब हमारे परिवार के वरिष्ठ उच्चाधिकारी का हो खैर क्या फर्क पड़ता है की काफिला किसका था । अब उस काफिले के अंतर्गत ये दिखाया गया की एक अधिकारी की कार के आगे पीछे अनेक कारें थी । अब ये बताइए की इसमें बुरा मानने वाली बात क्या है भला ? ये तो बहुत जरूरी है देश के किसी भी अमीर आदमी या उच्चाधिकारी की सुरक्षा । 

अरे ! आज-कल के वातावरण को देखो तो कितना घोर कलयुग है आंखें खुली हैं सब जानते भी हैं फिर भी ? यहॉं तो आए दिन लोग खबरों में सुनते , अखबारों में पढ़ते कि फलाने शहर , गली मौहल्ले मे खुलेआम किसी न किसी पर कहीं न कहीं हमला हुआ या मार दिया या अपहरण अन्य कितने अपराध हमारी आम जनता के साथ हो रहे । सोचने वाली बात यह है कि यहॉं तो आम जनता ही आम जनता का शिकार कर लेती है । 

पता ही नहीं चलता बहुत से अपराधों में तो की अपराधी कौन है । कौन कब कहॉं से घात लगाए बैठा कुछ कह नहीं सकते । अब ये तो हुई आम जनता की बात , कहने का मतलब यह है कि आम जनता ही जब दहशत में जी रही अपने आस-पास की जनता के बीच रहकर तो ज़रा तो सोचा होता कि ये तो उच्चाधिकारी या देश के सर्वश्रेष्ठ अमीर , अभिनेता वगैरह-वगैरह किसी का भी काफ़िला हो सकता है । इनके तो आम जनता से अधिक घात लगाने वाले शिकारी छुप छुपाकर बैंठे होंगे तो कैसे इनकी सुरक्षा में भला कोई चूक करे । साधारण शब्दों में विडियो बनाने वाले के भाव यह थे की  इतनी सारी कारें आगे पीछे लेकर घर से निकलने वाला या जो भी हो वो बहुत पैसा उड़ा रहा । अब सोचो मेरे विचारों को पढ़ क्या अभी भी यही कहेंगे कि पैसों की बर्बादी हो रही या पेट्रोल की जो चीज़ जरूरी है वो तो जरूरी ही है ना । अब बहुत ज्यादा जरूरत से भरी उपयोगी चीज़ को भी व्यर्थ बताना मेरी नजरों में तो कहीं से भी सही नही ।

इंसान को कोई भी बात कहकर ऊंगली करने से अच्छा है की उस के कारणों को शांतिपूर्ण समझे और जब समझ में आ जाए तो मेरी तरह ऊंगली को ही सौम्यता भरी स्याही में तब्दील कर उकेर दो अपने विचारों को कागज़ों पर । अरे भाई भला ये काग़ज़ जैसी बेहतरीन चीज़ हम सभी के लिए तो बनी है जिस पर मन के भीतर उठे ज्वार-भाटा, प्रेम , दुःख दर्द , खुशी सभी को लिख अपने भाव या सब बॉंट सकते हम इन कागज़ों के साथ । चलो अब मैं बहुत टहल ली अपनी कलम भावों संग भी कागज़ों के गलियारों में खो कर अरे अपने भावों संग । अब ज़रा कुछ काम ही कर लूं घर का । 

— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित