गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बिन वजह मुखड़े से मुखड़ा मोड़ कर।

आदमी टूटे है रिश्ते तोड़ कर।

प्यार को फिर जोड़ने में हर्ज क्या,

रख ले गुल्लक में पैसे जोड़ कर।

सहरा से क्यों बदआशीषें लेता है,

पानियों को पानियों में छोड़ कर।

पत्थरों के साथ कर ली दोस्ती

दर्पणों को तोड़कर मचकोड़ कर।

उस खुदा ने रात का सृजन किया,

सूरजों को मुट्ठी में नीचोड़ कर।

ग़ज़ल लिखना खेल नहीं है बालमा

तारों को फिर जोड़ देना तोड़ कर।

— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409