कविता

विकल्प 

तेरे होने और तुझको खोने के, 

मध्य सफर कितना था अल्प, 

उस  सफर में  बीते लम्हों के  

अलावा कुछ नहीं विकल्प,

तेरी होने से तो  बेहतर 

लगती तेरी है स्मृति, 

उम्र भर संग मेरी रहेगी 

स्मृति ने लिया है संकल्प|

मैं होती हूं वह होती है 

उसे खोने का डर नहीं| 

ना पाई है उसने काया 

उसके भी कोई पर नहीं| 

बना उसको अपना आंचल 

कांधे पर रखूंगी अनवरत| 

बीच राह में छोड़ जाये जो 

ऐसा निष्ठुर हमसफ़र नहीं|

स्मृति के सुखद स्पर्शों संग 

बीतेगा का संपूर्ण जीवन,

छूकर अक्सर पुलकित कर 

देती जैसे बासंती मंद पवन, 

यज्ञ हवन की पावन वेदी  

और मंत्र उच्चारण कहे गये,  

फिर कैसे बोलो तुम प्रियवर 

 तोड़ गए थे सात वचन|

संग  जीने से तो ज्यादा 

बिता दिए विलग के पल, 

आज फिर नैनो के कोरों पर 

आकर थम गए अश्रु जल, 

है सखे संचित मेरे उर  में  

प्रणय का वो  प्रथम मिलन, 

क्या स्मृति भी विस्मित होकर 

हमसे फिर करेगी छल|

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com