लघुकथा

लघुकथा – पार लेंगे हम

पोथी खोलने के बाद पुरोहित हिचकिचाने लगे। यह तय शादी बेमेल होने जा रही है। कैसे और किसे हम बताएं कि कभी भी अनिष्ट हो सकता है।
“क्या हुआ पुरोहित जी, जो सोचे जा रहे हैं आप?” जाह्नवी के पिता रामेश्वर ने कहा।
“अनिष्ट लिखा है यजमान बहुत भारी अनिष्ट।” पुरोहित ने सकुचाते हुए कहा।
“बहुत सारे ग्रह विधि-विधान से टल भी तो जाते हैं।” रामेश्वर ने उत्सुकता से कहा। क्योंकि वे अपनी बेटी की शादी के लिए सुयोग्य लड़का ढूंँढ़ते-ढूंँढ़ते काफी परेशान हो चुके थे।
“आगे कुआं पीछे खाई,,,,,किसे टालेंगे आप?” पुरोहित ने ऐसा कहा कि लोग और असमंजस में पड़ गए। एक तो कहीं शादी जल्दी लगती नहीं थी और लगी तो अनिष्ट लिखा है। क्या करें हम। पिता के लिए गंभीर समस्या थी, यह।
“आखिर लिखा क्या है? जो खुलते नहीं हैं आप और हम सभी को चिंता में डाले हुए हैं।” जाह्नवी ने सभी के सामने आते के साथ कहा।
“तुम विष-कन्या हो।” पुरोहित ने एक बेटी को गंभीर चोट देते हुए कहा। जैसे जन्म लेना उसके अपने बस की बात हो। और वह भी विष-कन्या। यह कितनी भद्दी गालियांँ पड़ती है बेटी जाति पर किसी ने आज तक सोचा कभी।
“यह एक अंधविश्वास है। मैं नहीं मानती, इसे ।” जाह्नवी ने अपने पिता की आंखों में छलछलाए आँसू को देखते हुए कहा।
“बेटी माँ की कोंख से सुकन्या जन्म लेती है, विष-कन्या नहीं। पुरोहित जी, हम आगे का कुआं पार लेंगे।” समधी के रूप में आए हुए रूद्र नारायण ने डंके की चोट पर कहा।
“और हम मुड़ेंगे न पीछे की खाई में गिरेंगे।” एक बेटी के पिता ने खुलते हुए कहा।
अब कोई बेटी विष-कन्या नहीं होगी।

— विद्या शंकर विद्यार्थी

विद्या शंकर विद्यार्थी

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