ग़ज़ल
याद करके मुझे ना सताया करो,
पास आओ या मुझको बुलाया करो।
आ रही हैं हिचकियां बहुत जोर से,
दिन दहाड़े न न्योता पठाया करो।
तुम हमारे सही, हम तुम्हारे सही,
गैर के सामने ना नुमाया करो।
बात मानो अगर तो सफाई रखो,
मत सफाई के बदले सफाया करो।
आज रिश्ते सभी जल रहे बुझ रहे,
जो बचे हैं उन्हें तो बचाया करो।
हाथ में लट्ठ डायन के दो ना कभी,
नीम पर ना करेला चढ़ाया करो।
चाहते हो जो मिलना अकेले अवध,
तर्जनी को ज़रा सा हिलाया करो।
— डॉ अवधेश कुमार अवध
