कविता

अतीत के पन्ने

अतीत के चल चित्रों में,
कुछ पन्नों पर अंकित थे ।
मेरे बचपन के चल चित्र
जिनमें छिपे मेरे सपने थे।।

रोज़ एक सलाई बुनती थी,
तब कुछ फन्दे बन जाते थे।
आस पास मेरे करीबी मित्र
मेरी चर्चाओं में शामिल थे।।

वो टेढ़े – मेंढे अल्हड़ रास्ते,
मेरे बचपन की पग डंडी थे।
वादियों की रज स्वच्छ पवित्र,
अनकहे लफ्ज़ों के नगमे थे।।

उन चल चित्रों में खोई मेरी यादें
मेरे संकल्पों के बीजों केअंकुर थे।
कुण्डलित ग्रहों का वो भोज पत्र
जिसमें मेरे नक्षत्रों के चल चित्र थे।।

ब्रह्मा विष्णु महेश रचित पुण्य भूमि,
मेरी जन्मकुंडली के कण पुष्पित थे।
चहुं ओर ब्रह्म कमलों का फैला इत्र,
प्रकृति प्रेम के पुष्प नृत्य कर रहे थे।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ सहजा

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)