दुःख में पुलकित हो तो जानें
बीत गईं पतझड़ की घड़ियां,
अब बसंत मुस्काएगा,
रे मन, अब तो धीर धरो फिर,
मन मधुमय हो जाएगा.
कल तक जो थे अपत-कंटीले,
आज कोंपलें उन पर शोभित,
कलियां जैसे ही मुस्काईं,
भौंरे हो जाएंगे मोहित.
मन-पंकज को दुःख की पंक से,
पंकिल क्यों होने देते हो?
मुख-मंडल को म्लान कसक से,
शंकित क्यों होने देते हो?
कण सम दुःख को समझ मेरु सम,
क्यों भरते हो दुःख-उदधि को,
कैसे तैरेगी सुख-नैय्या,
बहकेगी पतवार निधि तो?
सुख में तो सब हर्षित होते,
दुःख में पुलकित हो तो जानें,
रैन-दिवस उजियार-तमस में,
रहो एकरस तो हम मानें.