लघुकथा

सन्नाटा मुखर हो गया !

“मैं समय हूं ! आज का वर्तमान एक दिन अतीत बन जाता है और फिर इतिहास । इसलिए चाहो तो मुझे इतिहास भी कह सकते हो !” लॉकडाउन के सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज मुखर हो गई थी । यह समय था या सन्नाटा, या फिर स्वयं इतिहास! समझना मुश्किल था ।

यह सन्नाटा केवल बाहर का नहीं था, अंतर्मन का भी था । कहने को तो लॉकडाउन के कारण घर में बैठे हुए सब अपना-अपना काम कर रहे थे, पर कैद के अहसास के चलते मन का सन्नाटा निरंतर हावी था ।

व्यापार में विघ्न आने के कारण चरमराती अर्थव्यव्स्था, जॉब और स्वास्थ्य की असुरक्षा की भावना लोगों को उत्तेजित और भयभीत कर रही है, फिर भी वे यह दिखाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, कि वे बहुत खुश हैं, उनके सुप्त सुसंस्कार जीवित हो रहे हैं, परिवेश का प्रदूषण कम हो गया है, नदियां स्वच्छ-निर्मल हो गई हैं, बर्फीले पहाड़ दिखाई देने लगे हैं, परिंदे खुशी से चहक रहे हैं, फूलों की सुंदरता बढ़ रही है और उन पर तितलियां मंडरा रही हैं, प्रकृति की खूबसूरती पूरे निखार पर है, लोगों की ईमानदारी पूरे शबाब पर है, कब के छूटे हुए शौक पूरे हो रहे हैं, लेकिन मन में सन्नाटे को चीरता हुआ सवाल है, कि ‘लॉकडाउन के बाद क्या होगा और कैसे होगा!’

एक और सन्नाटा भी इतिहास का हिस्सा होने बाला है । लॉकडाउन के चलते फंसे मजदूरों की बेबसी और भुखमरी, लॉकडाउन के अनुशासन की धज्जियां उड़ाते हुए असुरक्षा के अहसास के सुरक्षाकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों पर पथराव और जानलेवा हमले ।

‘तब रामायण और महाभारत लिखने वाली तुम्हारी यह कलम लिखने को विवश हो जाएगी ”और तो क्या था बेचने के लिए अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं !” मूक सन्नाटा मुखर हो गया था !

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सन्नाटा मुखर हो गया !

  • लीला तिवानी

    लॉकडाउन में हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में परेशान है. कुछ व्यक्ति अपने घर से दूर फंसे हुए हैं तो उनके घरवाले भी परेशान हैं. लॉकडाउन में फंसे पति के नहीं लौटने पर एक महिला ने खुदकुशी कर ली, कैद की भावना का तनाव तो सबके मन में है ही. कामगार काम न मिल पाने से परेशान हैं, तो पैसे वाले कामगारों के न आ पाने के कारण खुद काम करने को विवश. बच्चे ढंग से पढ़ाई न कर पाने से दुखी, तो व्यापारी व्यापार डूब जाने के भय से परेशान. कागकाजी महिलाएं घर में रहकर काम भी कर रही हैं, बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को भी संभाल रही हैं, घरेलू सहायकों के न आने से उनका काम भी उनके पल्ले पड़ गया है, तीमारदारी भी उनके हिस्से आई है. परीक्षा लेते कोरोना ने महिलाओं को शक्तिशाली दुर्गा बना दिया है. यही इतिहास बनने वाला है. समय इनका साक्षी है, तो कलम इसे अभिव्यक्त करने का साधन.

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