ब्लॉग/परिचर्चा

हमने भी सीखा-4

दो मुक्तक

चले आए थे महफिल में तेरी
दीदार की हसरत लिए
आंखें तरसकर खुलना भूल गईं
ताकते रहे हम
बैठे हैं अब लब सिए.

सुना था इश्क में
लोग हो जाते हैं दीवाने
एक हम हैं कि
मिला न विसाल-ए-सनम
खुद से भी हुए बेगाने.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244