गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हद से ज्यादा करीबियां बढ़ कर ।।
दूरियों में बदलतीं हैं अक्सर ।।
आंधियों का नहीं कोई भी डर ।।
दीप रक्खेंगे हम मुड़ेरों पर ।।
ये भी है सोचना बहुत लाज़िम,,,
किसका आशीष है तेरे सर पर ।।
मेरी मंजिल की भी खबर हो तुम्हें,,,
वाकई हो अगर मेरे रहबर ।।
शेर की इक दहाड़ है काफी,,,
तेंदुओं के तमाम झुण्डों पर ।।
उड़ न जाएं ये सोंच में है दरख़्त,,,
अब परिंदों के उग गए हैं पर ।।
— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश