मुक्तक/दोहा

दुर्गेश के दोहे

संशय

संशय मन मत पालिए, संशय करे तबाह ।

संशय की दीवार को, दो इक पल में ढाह।

बदलें कब हालात 

हुनरमंद करते सदा, नित नयी करामात। 

काहिल बैठा सोचता, बदलें कब हालात। 

जुमलों की सौगात

अपनी अपनी सब कहें, सुने नहीं पर बात। 

बिन मांगे सबको मिले, जुमलों की सौगात।

बेगारी के भाव 

समझौतों से चल रही, जीवन की यह नाव।

हर दिन बढ़ते ही गए, बेगारी के भाव। 

ग़म रहें गुमनाम

साहस की शमशीर से, कटते बंद तमाम।

खुशियां अंग संग रहें, ग़म रहें गुमनाम।

— विनोद वर्मा दुर्गेश

विनोद वर्मा दुर्गेश

तोशाम, जिला भिवानी, हरियाणा