कविता

शान्ति/अमन

जब जब गहराते हैं काले बादल गुबार के जब जब होते हैं धमाके बमबारी, मिसाल गोला बारी के जब जब अमनो चैन हो जाता है आहत सिसकती है इंसानियत दिखने लगते हैं बर्बादी के मंजर हर तरफ उजड़ी बस्तियां टूटी इमारतें टूटी सड़कें टूटे मार्ग टूटे आशियाँ हर ओर पसरा मातम उदासियों का हर ओर […]

कविता

विचलित करता है ये सवाल

बेहद विचलित करता है ये सवाल अक्सर आखिर कैसी जीवन शैली है ये आखिर कैसे एक हंसती, खेलती , चलती , फिरती बोलती, चहकती ज़िन्दगी अचानक से बस एक तस्वीर बन कर रह जाती है छोड़ बस अपनी यादें और छाप जब भी कोई अपना या परिचित चला जाता है छोड़कर यही सवाल कौंधता रहता […]

कविता

अर्थ

बोलों में खामोशियों में करनी में भरनी में स्नेह में अपनत्व में पीड़ा में मोह में भय में भीड़ में तन्हाई में कहने में सुनने में जीत में हार में जीवन में मरण में कैसे भेदे कोई छुपे अर्थ को कोई क्या कहता है कोई क्या करता है कोई क्या पाता है कोई क्या खोता […]

कविता

एहसास हूँ

एहसास हूँ मैं जिसका न कोई रंग न कोई आकार बस मीठी सी कसक है जो पहुँचे दिल से दिल तक। एहसास हूँ मैं जिसका न कोई वक्त  न कोई मौसम बस मीठी सी महक है जो पहुँचे दिल से दिल तक। एहसास हूँ मैं जिसका न कोई नाम न कोई पहचान बस मीठी सी […]

कविता

कोहरा

न हूँ मैं डरी ,सहमी ,दबी सी न बोल्ड ,तेज़ ,तरार न हूँ मैं चार दिवारी में सिमटी न पार्टीज़ की शान न हूँ मैं पलू ओढ़े न कम से कम कपड़ों में क्या कसूर मेरा की न मैं पिछड़ी हूँ न मैं आधुनिक क्या कसूर मेरा भाए मुझे सलवार सूट , साड़ी न जीन्स, […]

सामाजिक

कैसी मौत ये?

बड़े बुजुर्गों से अक्सर  सुना है आप किसी की खुशी में भले शामिल न हो पाओ पर उसके दुःख में ज़रूर शामिल हो। पर ये कोरोना काल क्या आया गैर तो दूर अपनों ने ही पल्ला झाड़ लिया और यूँ इंसानियत ही न जाने कहाँ खो गई। कितना दुःखद लगता है एक बुजुर्ग अपनी पत्नी […]

कविता

मानवता की परीक्षा है

एक ओर जहाँ लोग बेहाल भाग रहे यहाँ से वहाँ लिए अपने परिजनों को इलाज के लिए एक हस्पताल से दूसरे हस्पताल फिर भी मिल नहीं रहा दाखिला ,न दवा, न इलाज , न इंजेक्शन, न ऑक्सीजन और यूँ दम तोड़ रहे लोग हज़ारों मरने पर भी नहीं इज़्ज़त से हो रहा अंतिम संस्कार वहां […]

कविता

त्राहि त्राहि कर रहा देश

त्राहि त्राहि कर रहा देश मची ऐसी हा हाकार दम तोड़ रही सांसें कहीं बिना इलाज के क्योंकि नहीं मिल रहा बेड कहीं बिना ऑक्सिजन कहीं बिना दवा, इंजेक्शन हर तरफ बस है लाचारी पसरी हुई हर तरफ दर्द है पसरा हुआ हर तरफ बस आँसूओं का सैलाब नहीं जगह हस्पतालों में नहीं जगह श्मशानों […]

कविता

कुछ तो बात है

यूँ ही नहीं खिलता, महकता, बहकता दिल गुम तेरी यादों में कुछ तो बात है जो ये दिल मेरी सुनता नहीं बस रहता है भागता तेरी ओर खो सुध बुध सारी ।। हो मौसम कोई भी तपती गर्मी ठंडी  सर्दी रिमझिम बरखा बसंत या पतझड़ कम होती नहीं चाहत इस दिल की बस रहता है […]

कविता

संस्कार देश की पूंजी है

क्या सिर्फ कहने भर की रह गयी ये बात अब संस्कार देश की पूंजी है…. गमगीन आँखों में आँसूं लिये अपने परिजन को करने विदा गए सगे संबंधी और श्मशान की छत धराशायी होने से कई जान गंवा बैठे कई हुए घायल क्या भरना बड़ा खामियाजा उन्हें लालच , भ्रष्टाचार में लिपटे उन लोगों के […]