कविता
मेरे अस्तित्व की भूख है तुम्हेंतो लो आज मिट्टी हुई जाती हूंमेरे प्राणों की प्यास थी तुम्हेंतो लो आज निष्प्राण
Read Moreमां की भी क्या बात चलाई जीवन की है मात मिठाई फीके फीके मां बिन सुख हैं दुख की धूप
Read Moreअधजली चिता से ,चीख कर, कह रही लकडी़ जलती देह संग ,राख हो ,बह रही लकड़ी पानी भर अंजुल ,कभी
Read Moreमुश्किलों ने कहा पाला पड़ा है हम डरें क्यों अपने पीछे राम जब खड़ा है कुंदन बनता सोना अग्नि में
Read Moreकिसी को लोभ लाता है! किसी को लाभ लाता है! प्रभू प्रेमी विवश बना, विरला कभी आता है! पुण्य लाभ
Read Moreपरिवर्तन होना तो तय है परावर्तन कैसे होगा तू सदा तुझ सा ही रहेगा भला और कैसे
Read Moreआशाओं के मंगल दीप ,जला मेरे मन… तिमिर निराशाओं के, अब ना ला मेरे मन.. हर रात की जब भोर
Read Moreजीवन बनके दौड़ौ हर जिंदगानी में रक्त से ही जिक्र शुरू है हर कहानी में मानवता और ,सह अस्तित्व को
Read Moreमुख पर सुरीले गीत ह्रिदय रसहीन वाणी झरे मेह मन करुणा विहीन सुहाता जिन्हें निज स्वार्थ ही केवल करें श्रृंगार
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