स्त्री
स्त्री (विश्व महिला दिवस विशेष) स्त्री हूँ मैं हाँ स्त्री, स्त्री ही मुझको रहने दो। पावन पुण्य धरा पर मुझको
Read Moreबहुत सह ली तेरी गद्दारी , अब नही सह पाऊँगी| ऐसे देश द्रोहियों को , देश से निकाल फेकूँगी| जगह-जगह
Read Moreसरहदों को सुरक्षित रखता रहा। खुद को यूंही समर्पित करता रहा। भेद नहीं आता जाति पंथ का सबको बस इन्सान
Read Moreमानव मन विकृत स्वरूप अहम क्षीण मानसिकता सोचने का नज़रिया खुद की तारीफ़ पसन्द मानसिक ईर्ष्या का ज्वर अनिर्णायक क्षमता
Read Moreइन ऊबड़-खाबड़ रास्तों ने मुझे चलना सिखा दिया उठकर गिरना और फिर गिरकर उठना सिखा दिया इन रास्तों पर बहुत
Read Moreमन तो आतुर है , ऊंचा उड़ने को, जाकर बादलो के पार नील गगन चूमने को, इंद्रलोक की अप्सराओं के
Read More“कुंडलिया” चहक चित्त चिंता लिए, चातक चपल चकोर ढेल विवश बस मे नहीं, नाचत नर्तक मोर नाचत नर्तक मोर, विरह
Read Moreअब प्यार के मुनासिब , कहीं कोई दिल नहीं मिलता, अब दिल के आँगन में प्यार का गुल भी
Read Moreक्षितिज की और संध्या काल में निहारती नारी के मन में उठते भावो का ब्यान करती हुई यह कविता —–
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