मुक्तक
उड़ने का ख्वाब रखता हूँ फटे में टांग नहीं फसाता हूँ। माँ की परछाई को पाकर मैं गगन को चूम
Read Moreदोहे “बादल करते हास”—बारिश का पीकर सलिल, आम हो गये खास।पक जायेंगे आम अब, होगी मधुर मिठास।1।—गरमी कुछ कम हो
Read Moreपेड़ काटने चल दिए ,देखो मूरखराज ,छाँह राह में खोजते ,आवत नाही लाज। दस पेड़ों को काट के ,लगा रहे
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