फिर सदाबहार काव्यालय- 50
एक विषय बचपन: चार कवि 1.हां मैं बचपन हूं! मैं अल्हड़ हूँ, मैं कोमल हूँ, मैं, हूँ एक पुलकित पंग-पराग,
Read Moreएक विषय बचपन: चार कवि 1.हां मैं बचपन हूं! मैं अल्हड़ हूँ, मैं कोमल हूँ, मैं, हूँ एक पुलकित पंग-पराग,
Read Moreबाल न बांका हो कभी, टूटे ज़रा न आस। पालन हारे पर रखे , मानव जो विश्वास। झेलेंगे हमले नये
Read Moreतुझे ढूंढने निकले थे हम और देखो खुद को खोकर आये हैं जब जब दूसरों को सम्भाला तब तब ही
Read Moreचले चलना चले चलना कभी कमजोर मत पड़ना बिछे हों राह में कांटे उन्हें तुम रौंद के चलना। चले चलना
Read Moreइंतजार के उस मौसम में ,तेरी यादें महकाती थी । अक्सर जो दिल बोझिल होता ,आ चुपके सहला जाती थी
Read More