कविता
जब मै कोयल सी कूक रही थी पेङों पर,, तब मनमुग्ध से तुम भावविभोर हो उठे,, बसाया अपने मन में
Read Moreमैं कवि नहीं हूँ और नाहीं कोई कविता करना जानता हूँ मैं दीपक हूँ इसीलिए सिर्फ जलना जानता हूँ |
Read Moreइस तरफ़ यक झोपड़ी उल्टी पड़ी है उस तरफ़ दसमंजिला अब तक खड़ी है इसलिये तूफ़ान ने बदला है रुख
Read Moreजिंदगी के जोड़ घटाने में रिश्तों का गणित अक्सर जरूरत के वक़्त जाने क्यों शून्य हो जाता है और मन
Read Moreजुगनू सा जीवन कहो , दप दप करती आस ! तम से लड़ना है यहां , जब तक घट में
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