पद्य साहित्य

कविता

कविता : कुछ यूँ मुहब्बत कर लो ,कि नफ़रत जल-जल के ख़ाक हो जाये..

कुछ यूँ मुहब्बत कर लो ,कि नफ़रत जल-जल के ख़ाक हो जाये.. कुछ यूँ इबादत कर लो,कि मन्दिर-मजजिद एकमत एक-विश्वास

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