ख्वाब
आँखें ढूँढती हैं हर पल वो ख्वाब ख्वाब में भी जो सच लगे बाँध कर उड़ते हुए मन को जो
Read Moreरोते को हँसाना , रूठे को मनाना मरुथल में परिश्रम कर फूल खिलाना दीनों की सहायता करना बुज़ुर्गो का हाथ
Read Moreचक्की मिल तो ‘सोशल डिस्टिनसिंग’ के कारण तो जानी नहीं है…. गेहूँ के दर्रे तैयार करने में ‘माँ’ जुटी हैं,
Read Moreकिसी तरह की ‘वायरस’ की आजतक कोई दवा नहीं बनी है ! चाहे वो डेंगू वायरस हो, चिकनगुनिया हो, एचआईवी
Read Moreमैं हूँ “भाषा का डॉक्टर” ! हर विचारों, सिद्धांतों का ‘पोस्टमार्टम’ करता हूँ और नए-नए विचारों पर कार्य करता हूँ
Read More