गर्मी निशदिन बढ़ती जाए
गर्मी निशदिन बढ़ती जाए,व्याकुल मन दिन रैन।हर पल मेरा मन घबराए, पाऊँ कहीं न चैन।। सकल सृष्टि की महिमा न्यारी,उचित
Read Moreगर्मी निशदिन बढ़ती जाए,व्याकुल मन दिन रैन।हर पल मेरा मन घबराए, पाऊँ कहीं न चैन।। सकल सृष्टि की महिमा न्यारी,उचित
Read Moreगुजरता हूँ जब भी कभी गांव की गलियों सेदेखता हूँ खंडहर बने वह घर जो कभी आबाद थेगिर चुके है
Read Moreमैं भी बुन रखी थीअपने सपनों की एक दुनियाएक झोंका ऐसा आयाबिखर गए सारे धागेकुछ न बचा सिवायएक रीतापन के;काश
Read Moreऐ ज़िंदगी, तू हर रोज़ इक नया चेहरा दिखा देती है,अपनों की भीड़ में अजनबियों-सी हवा बहा देती है।हर रिश्ते
Read Moreऐसे दौर में हैं, जहांमुस्कानें भी मुखौटे हो गईं,चुप्पियाँ भी साजिशें बुनने लगीं,जहां दोस्ती का रंग अब,पल भर में ज़हर
Read Moreरिश्ते – वो मौन स्पंदन,जो न फासलों से बंधते हैं,न ही समय की सीमाओं से,ये तो दिल की उस गहराई
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