ग़ज़ल
फिर उठकर ताज़ादम होने की ख़ातिरजाता हूँ बिस्तर पर सोने की ख़ातिर सबके साथ नहीं हँसना है सोच लियाफँसना पड़
Read Moreमैं वह बड़ा बेटा हूँ,जिसने हँसकर जीवन की आग पिया है।जिसने चुपचाप लुटा अपना यौवन,और घर का भाग्य सिया है।
Read Moreधार्मिक मंगल को मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।चाहे ज्ञानी संत हो, या कोई अज्ञान।। दर पर भारी भीड़ है, हनुमत जी
Read More‘प्रीति’ की प्रीत ने मन लिया हैं जीत,34 लड़कियों को गोद लें बनी मीत।16 साल पहले ऋषिकेश घूम आई,अनाथ बच्चों
Read Moreक्यों? मनाया गया जीत का ऐसा जश्न,जिसमें अनुत्तरित ही रह गए सारे प्रश्न।चैंपियन को देखने खूब भीड जमा हुई,स्टेडियम के
Read Moreझूठे दिलासों में जीने वालोंइस जिंदगी में देर भी होता है,और अंधेर भी होता है,बस आश्वासन थोक में मिलता है,हर
Read Moreमैं लिखता रहालिख-लिख मिटाता रहा । वक्त ने सतायामैं सहता रहाकाल के माथ परलिखता रहालिख- लिख मिटाता रहा । कभी
Read Moreसाहित्य न बिकता है, न झुकता है,वह तो भीतर की लौ में सुलगता है।ना नाम के पीछे, ना दाम के
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