व्यंग्य – काश, मैं झोलाछाप डॉक्टर होता !
काश, आत्मा होती और शरीर नहीं होता तो कितना अच्छा होता ! उक्त विचार मुझे तब आया जब मेरे नाक
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Read Moreरामभरोसे जी वैसे तो हैं सरकारी मुलाजिम, लेकिन उनमें संजीदगी कूट-कूट कर भरी हुई है। अपनी इसी संजीदगी की वजह
Read Moreट्रेन में टॉयलेट का पानी यूज कर चाय-कॉफी़ बनाने पर हो हल्ला हो रहा है। पानी तो पानी है ,कहीं
Read Moreचाहे इस गोद में रहे चाहे उस गोद में, सवाल तो साज-सम्भाल का है चाहे बात बेजान बूतों ,प्रतीकों,स्मारकों की
Read Moreभईयाजी नेता जी एक ही बड़का दांव जानते हैं ,वो हैं पैंतरे बाजी , चुनाव के बाद एक साल तक
Read More“सुन भाया एक बात बताओ । बड़े उदास लग रहे हो।” “भंवर जी के बताऊ, बेटा कह रहा था पिता जी
Read Moreयह तो जग जाहिर है कि जितनी राशि ऋण वसूली करके सरकारी खजाने में नहीं आती है उससे कई अधिक
Read More…कुछ लोग “बचाओ-बचाओ” के शोर के साथ मेरी ओर बढ़े आ रहे थे…उत्सुकतावश मैं अपने आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ देखने लगता हूँ
Read Moreआर्यावर्त नामक एक लोकतांत्रिक चरागाह थी . यहाँ खूब हरी- हरी घास उगती थी . इस चरागाह में अभिव्यक्ति की
Read Moreकानपुर की ओर जा रही बस पर मैं चढ़ लिया। बस की साठ परसेंट सीटे भरी थी। एक खाली सीट
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