बाप के जूते में बेटे के पांव
बाप तो आखिरकार बाप ही होता है। बेटा बेटा होता है। बाप के आगे बेटे की क्या बिसात है। अगर
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Read Moreमेरी नियुक्ति जब एक कमाऊ विभाग में हुई तो परिवार के लोगों और सगे – संबंधियों को आशा थी कि
Read Moreनया साल व्यंग्यकारों के लिए बड़ा चौचक रहने वाला है। नए वर्ष में व्यंग्यकारों की कुंडली के सातवें घर में
Read Moreइसे संयोग कहिए या दुर्योग, जनकवि ‘रसिक’ जी की मुलाकात प्रख्यात आलोचक ‘कवि दहल’ से हो ही गई। दोनों यथा
Read Moreसाधारण मनुष्य, स्वर्ग-प्राप्ति की कामना जीता और मरता है। हमारी संस्कृति में स्वर्ग तक पहुँचने के अनेक साधन और मार्ग
Read Moreगधा बेचारा सामान को ढोकर थककर बहुत , एक दिन बोला इस हम्माली से मुक्त होना है अब तो बस
Read Moreदेश में इन दिनों चीख-पुकार मची हुई है। जब भी देश में कुछ नया होता है तो लोग चीखते हैं
Read Moreवे मुझसे श्मशानघाट में मिले। मुझे देखते ही लपक कर मेरे पास आए। बोले, ‘यही वह जगह है जहां आदमी
Read More-अशोक मिश्र थे तो वे दोनों गधे ही। उनकी मुलाकात अचानक हुई थी। अचानक हुई मुलाकात थोड़ी देर बाद मित्रता
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