नववर्ष
नववर्ष की परिकल्पनाकल्पना ने यूँ उकेर दीअंतर्मन में छुपी हुई होजैसे आकाँक्षा बचपन की पेड़ों पर हो चहचहातीपक्षियों की आवाजेंघोल
Read Moreतन्हाई में कभी चुपके से आनामन मष्तिष्क पे दस्तक दे जानादिल की हवेली का खोलुँ मैं द्बारमुस्कुरा कर समां जाना
Read More“सर इस पुरानी किताब को आप क्यों बँधवाना चाहते हैं?” दुकानदार शौकत अली ने कहा।दुकानदार से प्रोफेसर राय की दोस्ती
Read Moreविघ्नों का पर्वत भी उखड़े,संघर्षों का ग्लेशियर पिघले,हाथ-से-हाथ मिलकर चलना,सागर जीत के मोती उगले।किसी से प्रतिस्पर्धा क्यों करना,किसी को पीछे
Read Moreअद्भुत चलन संस्सार काजीता न कोई होड़कर।कुछ भी न जीवन में बचादेखा घटाकर – जोड़कर। यादें पिघल, झरने बहेकटु शब्द
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