दूरदर्शन के कुछ कार्यक्रम कर रहे हैं गुमराह
प्रायः बच्चे अपने माता-पिता एवं घर के अन्य बड़े बुजुर्गों को ही अपना रोलमॉडल मानते हैं और उन्हीं का अनुकरण
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Read Moreयदि हमरे बस में होता, नदी उठाकर घर ले आते, अपने घर के रोज़ सामने, उसको हम रोज़ बहाते. -प्रभुदयाल श्रीवास्तव ‘कंधे पर नदी’ कविता लिखते हुए प्रभुदयाल श्रीवास्तव ने कभी यह नही सोचा होगा कि भारत में एक दौर ऐसा भी आएगा जब यही नदियां विश्व कि सबसे प्रदूषित नदियों में से एक हो जाएँगी. भारत में सभी सहायक नदियों को मिलकर कुल 51 नदियां है. जिसमे से हिमालय से निकलने वाली ‘सिंधु, गंगा, और ब्रह्मपुत्र’ प्रमुख है। प्राचीन समय से सभी नदियां भारतवासियो के जीने का हिसा रही है। लेकिन 20वी शताब्दी में आते ही नदियों ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया। वर्ल्ड रेसोर्सेट के मुताबिक 70 फीसदी भारतीय गन्दा पानी पीते है जिनसे पीलिया, हैजा, टायफाइड, और मलेरिया जैसे अनेक खतरनाक बीमारिया पैदा हो रही है। इतना ही नही ‘द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट’ अथार्थ ‘टेरी’ के एनवायर्नमेंटल सर्वे 2015 में कहा गया कि दिल्ली में 92 फीसदी लोगो ने माना है कि यमुना के पानी की गुडणवत्ता ख़राब है। दिल्ली के वो 8 फीसदी लोग कौन है जिनका मानना है, कि यमुना का पानी पिने योग्य है, इसपर रिसर्च करके बड़ी बहस हो सकती है। लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है, कि नदियों का पानी ख़राब होने कि वजह क्या है? क्यों नदियों ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया है? जीवन देनी वाली नदियां अब क्यों जान लेने पर तुली है? अगर यह बात किसी भी आम आदमी से पूछी जाये तो उसका यही कहना होगा कि औद्योगिक कचरे कि वजह से नदियां प्रदूषित हो रही है। परन्तु सर्वे कुछ और ही बयां करते है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक मात्र 30 फीसदी प्रदूषण कि वजह औद्योगिक कचरा, कृषि अपशिष्ट और कूड़ा इत्यादि है। यानि कि औद्योगिक कचरे कि मात्र 30 फीसदी से भी कम। वाही 70 फीसदी प्रदूषण कि वजह अशोधित गंदगी और मल-मूत्र है। अकड़े से साफ जाहिर होता है कि नदियों को कम्पनिया कम और मनुष्य ज्यादा गन्दा कर रहा है। लेकिन लगातार औद्योगिक कचरे का इजाफा बढ़ता जा रहा है है, जो एक परेशानी की बात है। भारत जैसे जैसे विकास कि तरफ बढ़ता जा रहा है, तरक्की कि तरफ भागता जा रहा है, तो दूसरी तरफ बहुत बड़ी गलती भी कर रहा है। आज देश कि 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हो चुकी है और खतरनाक बीमारियो को जन्म दे रही है। इसके बचाव में पिछले 25 वर्षो में विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने नदियों को साफ करने में 8 अरब से ज्यादा रूपये खर्च किये है, परन्तु गंदगी का प्रतिशत घटने कि बजाए बढ़ता जा रहा है और रुकने का नाम ही नही ले रहा। दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में अब गंगा भी हो चली है। मोदी सरकार हो या फिर कोई और सभी ने पैसा को पानी की तरह पानी में बहा दिया। पिछले साल तय किया गया कि इस्राएल कि मदद से 2020 तक गंगा को साफ कर दिया जायेगा। लेकिन खुद इस्राएल के विशेषज्ञों का मानना है, कि गंगा को साफ करने के लिए काम से काम 20 वर्ष लग जायेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्वच्छ भारत अभियान में गॉव, कसबे, शहर, कि गलियो को, सड़को को, नलियो को, मैदानों को, साफ रखने कि बात कही, अगर नदियों को भी इसी में जोड़ दिया जाता तो इसका असर इतना होता कि जो प्रतिशत बढ़ता जा रहा है वो कम तो होता ही। आज गंगा, यमुना, सिंधु, या कोई और नदी, सभी पर सरकार को पैसा बर्बाद करने कि बजाय चिंतन करना चाहिए और गंदगी फैलाने कि सही वजह ढूंढकर उस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो आने वाले कुछ वर्षो में यह पता लगाना नामुमकिन हो जायेगा कि सबसे प्रदूषित नदी कौन सी है, क्योकि सब का रंग एक जैसा होगा. 0 फीसदी ऑक्सीजन के साथ, ‘काला’। मनोज सिंह
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