व्यंग्य – लक़ीर के फ़क़ीर बने रहें
समझदारी इसी में है कि हम लक़ीर के फ़कीर बने रहें। इससे सबसे पहला और बड़ा लाभ ये है कि
Read Moreसमझदारी इसी में है कि हम लक़ीर के फ़कीर बने रहें। इससे सबसे पहला और बड़ा लाभ ये है कि
Read Moreअंधकार से प्रकाश की ओर जाना है, अन्तस् के तमस को मिटाना है, सद -भावनाओं के दिये भुवन भर में
Read Moreजब तक उर में रहे अँधेरा, दीप जलाने से क्या होगा! कुटिया-कुटिया हई न रौशन, महल सजाने से क्या होगा
Read Moreदीपावली की सफाई के साथ ही बच्चों की अधिक से अधिक पटाखे लेने की फरमाइश बढती जा रही थी।घर सफाई
Read Moreदिए जलाएँ नेह के , बिन बाती बिन तेल। दीवाली हर रोज़ है , जब हो मन में मेल। जब
Read Moreमैं चन्दा जब जब देखूं, तेरा मुखड़ा उसमें देखूँ। चलनी लिए तेरे आँगन, सौ सौ बार तुझको देखूँ। करवा माता
Read Moreशाख से टूटे हुए पत्ते बताते हैं व्यथा कल हमारे दम से रौनक थी इसी गुलजार में और सूखे फूल
Read More“एक नन्ही-मुन्नी के प्रश्न ” मैं जब पैदा हुई थी मम्मी, तब क्या लड्डू बांटे थे? मेरे पापा खुश हो
Read Moreकर्म पथ पर हमेशा मैं चलती रहूंगी | धर्म कर धर्म के संग बढ़ती रहूंगी | चलो माना कि पथ
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