कविता

खुशियों का अंबार

मेरे भाई अरविन्द कुमार की एक अन्य कविता

आकाश मे सूर्य प्रज्वलित रहे हमेशा पूरी तीव्रता के साथ,
ताप और रोशनी दे हर दिन – हर पल एक समान ,
सूर्य करे न किसी से भेद-भाव,
यह तो है धरती की अपनी धुरी पर परिक्रमा,
जो बनाए कहीं दिन कहीं रात ,
कहीं धूप कहीं छाँव ,
कहीं गर्मी कहीं बरसात,
कहीं पर्वतमाला कहीं मरुस्थल,
भगवान की कृपा – आशीर्वाद है सब के साथ एक समान ,
फिर भी इंसान मुसीबतों से घबराए,
माया- मोह के चक्कर मे नश्ट करे अपना पूरा जीवन,
तेरे ही कर्मों से ही है
कहीं खुशी कहीं गम,
सृष्टि का निर्माण है ईश्वर मर्जी अनुसार ,
करते जा कर्म प्रतिदिन
उसके आदेशानुसार,
सच्ची भावना- लगन के साथ ,
खुलें गे तेरे खुशियों के द्वार ,
हर इंसान ढूंदता है भगवान को
गिरजाघर- मंदिर- मस्जिद मे ,
घंटे बजा-बजा कर,
ढ़ोल पीट-पीट कर,
लाउड-स्पीकर पर चिल्ला – चिल्ला कर,
सड़कों पर यातायात रोक कर,
सब को परेशान कर,
तरह-तरह के पाखंड कर,
सब की नींद हराम कर,
पर्वत की चोटियों पर,
नदियों मे डुबकी लगा कर ,
पत्थर की मूर्तियों को दूध पिला कर ,
मूर्ख क्यों समय वयर्थ करता है
यहाँ–वहाँ के चक्करों पर,
एक पल झांक के देख अपने भीतर,
श्रद्धा और प्रेम से ,
जब परमात्मा के होंगे दर्शन,
बिन आँसू बहाये ,
तुझे अपने ही अंदर,
मिलेंगे प्रभु
और मिलेगा तुझे
खुशियों का अंबार

–अरविन्द कुमार

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “खुशियों का अंबार

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता.

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