कविता

करवा चौथ पर एक हास्य कविता

करवा चौथ पर एक हास्य कविता 

वैसे तो यह पति नाम का प्राणी होता है बड़ा तुच्छ,
पर करवा चौथ के दिन तो  पत्नी के लिए है ‘सब कुछ’,  
बात बात पर पत्नी की जली कटी सुनते हैं उसके कान 
पर करवा व्रत के दिन तो कानो में गूंजती है यही तान —
तुम्ही मेरे मंदिर , तुम्ही मेरी पूजा, तुम्ही देवता हो, 
तुम्ही देवता हो, —
पति पत्नी के जीवन में हर साल आता है यह प्रसंग  ,
क्या इस से ज़ालिम भी हो सकता है कोई और व्यंग्य ,
फिर भी पति मज़बूरी में अपना पूरा कर्तव्य निभाता है.
अपनी हैसियत से बढ़कर पत्नी के लिए उपहार लाता है,
घर गृहस्थी चलाने के लिए पति कितना भी उलझा रहे,
काम और नौकरी के चक्कर में, खुद भूख प्यास भूला रहे,
फिर भी दुनिया उसके इस बलिदान से बिलकुल अनजान है,
पर पत्नी का एक दिन भूखा प्यासा रहना कितना महान है, 
चलो एक दिन ही सही ,आज के दिन तो पति ही स्वामी है,
उस की  दीर्घायु की कामना ही पति के लिए स्वाभिमानी है, 
फिर एक दिन में ही बदल जाता है सब कुछ —
और पति रह जाता है वही अदना सा एक प्राणी तुच्छ ,-
(सभी सुहागनों को क्षमायाचना के साथ और सभी पतियों को सहानुभूति सहित)

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “करवा चौथ पर एक हास्य कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    हा…हा…हा…हा…. पढ़कर मजा आ गया. आपने सही लिखा है.

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