कविता

स्कूल के एग्जाम

 

याद है जब स्कूल मेँ एग्जाम होता था?
दिमाग का पुर्जा पुर्जा तब जाम होता था।

ना रात मेँ नीँद ना दिन मेँ चैन होता था ,
पास फेल के चक्कर मेँ टीवी पर बैन होता था।

अंग्रेजी का परचा जब खस्ताहाल करता,
पैसेज का मैसेज अपना हाल बेहाल करता

फिर नौ दस दिन गैप मेँ ऐश ऐँसी होती,
सर्दी और गर्मी की छुट्टियोँ जैसी होती

फिर पेपर मैथ्स का जो आता था विकट
इसमे ही सबसे ज्यादा कटते थे टिकट

थियोरम के चक्कर मेँ पाइथोगोरस हारा,
ए बटा बी करके पप्पू लटका था बेचारा,

दो दिन फिर बडा आगे कैमिकल लोचा था,
विज्ञान के धरातल को अपने दिमाग से करोँचा था

साइंस का रट्टा तो अबतक जैसे याद है,
एल्काहोल का नंबर एचटूओ के बाद है,

फिर आती संस्कृत के पेपर की छुट्टी,
कमलानि विकसंति बना जनम घुट्टी,

सच कहूँ इस छुट्टी मेँ पढता ही कौन था,
वेदभाषा के नाम पर केवल एक मौन था,

दो दिन फिर काटे सामाजिक रट रटकर,
राजनीति इतिहास भूगोल चाटे डटकर,

फिर आखिरी मेँ प्यारी हिँदी का दिन आता,
मैँ गा गाकर कविता सारे घर को था सुनाता,

कहानियाँ पढने मिलतीँ बस एक दिन के गैप मेँ,
हिँदी की तो जगह ही नहीँ थी एग्जाम के मैप मेँ,

पेपर छूटते ही क्रिकेट का फिर तामझाम होता था,
याद है जब स्कूल मेँ एग्जाम होता था।

___सौरभ कुमार

(To my all dearest school friends)

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “स्कूल के एग्जाम

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक कविता !

Comments are closed.