हास्य व्यंग्य

अच्छे दिनन के फेर……

जब से सुना है कि ‘अच्छे दिन’ आ रहे हैं, दिमाग परेशान है । सुना है कि वो चल चुके हैं और जब चल चुके हैं तो देर-सबेर पहुँच ही जाएँगे । इस संबंध मे हमारा भी कुछ दायित्व बनता है । मसलन जब वो आएँगे तो  कहाँ ठहरेंगे, कौन उनकी अगवानी करेगा, वे क्या खाएँगे, क्या पिएँगे, कहाँ कहाँ घूमना चाहेंगे, आदि आदि।

       कोई कह रहा था कि ‘श्रीमान अच्छे दिन’  बुलेट ट्रेन से आ रहे हैं। अब अगर वो इतना पैसा खर्च के आ रहे हैं तो फिर उन्हें किसी गरीब के घर तो ठहराया नहीं जा सकता, न ही वो किसी निम्न स्तरीय स्थान पर रहना पसंद करेंगे । क्या किया जाय कुछ  समझ मे नहीं आ रहा है। अभी तो वो आए भी नहीं और हम मुश्किल मे पड़ गये। तभी याद आया कि वो विश्व स्तरीय स्मार्ट सिटी आखिर किस के लिये बन रहे हैं ?  वो एक-दो करोड़ के फ्लैट कोई गरीब तो खरीद नहीं सकता, तो क्यों न उनमें से एक मे माननीय ‘अच्छे दिन’ को ठहरा दिया जाय।  समाधान के मिलते ही सर से एक बोझ उतर गया। उनकी अगवानी को तो पहले ही हमारे पास अम्बानी, अडानी आदि के आवेदन आ चुके हैं, सो यह समस्या बनने से पहले ही हल हो गयी। हाँ, और जिन लोगों को उनका दर्शन करना हो वो हाशिए से देख सकते हैं। अब फटे हाल लोगों को दिखा कर माननीय ‘अच्छे दिन’ का मूड तो खराब करना नहीं है।

सुना ये भी है कि वे मौजूदा रेल आहार नहीं लेंगे, बल्कि सीधे किसी 5 सितारा होटल से खाना मंगवाएँगे। और क्यों न मंगवाएँ, रेल आहार कोई बुलेट ट्रेन वालों के लिये थोड़े ही है। नहीं, कुछ तो अंतर होना ही चाहिए। बुलेट ट्रेन है, कोई संपर्क क्रांति या सद्भावना एक्सप्रेस थोड़े ही है । तो ठीक है, अगर स्मार्ट सिटी है तो उसमें 5 सितारा रेस्ट्रां भी होगा ही और, लो जी, ‘क्या खाएँगे’ की समस्या का भी हल मिल गया।

अब रहा, कहाँ घूमना चाहेंगे । हाँ, ये एक टेढ़ा सवाल जरूर है पर हमारे जुगाड़ू देश मे इसका भी जुगाड़ हो जाना चाहिये । समस्या ये है कि, वैसे तो कहीं भी घुमाया जा सकता है पर साफ सफाई का भी तो खयाल रखना होगा । और साफ सुथरी जगह ही बड़ी समस्या है। गुटका पसंदों की कृपादृष्टि से घर-बाहर तो छोड़िये, यातायात के अड्डे, दफ्तर, बाजार, यहाँ तक कि हमारे ऐतिहासिक स्थान भी नहीं बच पाये हैं । दिमाग इस गुत्थी में उलझा हुआ था कि तभी याद आया कि हमारे नेता लोगों ने स्वच्छता अभियान के तहत कई स्थानों पर बड़ी संजीदगी से झाड़ू फेर रखी है। भई, मजा आ गया। समस्याओं का हल कितना सुखद अनुभव होता है, है ना ! अब हम आराम से श्रीमान ‘अच्छे दिन’ का इंतज़ार कर सकते हैं, वे चाहे जब आवें ।

अरे, कोई एक कप चाय तो ले आओ !

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

2 thoughts on “अच्छे दिनन के फेर……

  • विजय कुमार सिंघल

    व्यंग्य अच्छा है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा हा , बहुत बढिया .

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