समय का प्रेम …..
मेरा नाम मेरी जाति ….मेरा धर्म
लोगो की तरह
मुझे पुकारते रहें …
मै उन्हें छोड़ आया
करोडो चेहेरों की भीड़ से
बनी
इस अजनबी दुनियाँ के
सबसे लम्बे फुटपाथ पर
मै और मेरी यात्रा
साथ साथ चल रहें है
मेरी यात्रा –
जिससे मुझे बेहद प्यार है
हम दोनों के मन एक से है
कभी यात्रा मुझे तलाश करती है
और
कभी मै उसे खोजता हूँ
लेकीन
हम दोनों
सदियों से बने ..इस धरती पर
अकसर मिल ही जाया करते है
वो मेरी सुन्दर यात्रा है
और …..मै उसका हमसफ़र यात्री
किनारे से लगे …
मचल रही लहरों के
समुद्र ने हमें देखा
थोड़ी दूर पर खड़े
सबसे ऊँचे पहाड़ ने हमें रोका
बादलो की तरह उड़ता हुआ
आकाश हमें ….छूने के लिये झुका
संसार के सबसे बड़े आँगन की तरह …
इस घुमती हुई धरती ने
हम दोनों से पूछा –
कहाँ जा रहें हो ?
हम दोनों ने कहा -वही जहां तुम जा रही हो
लोगो की भीड़ से निर्मित -सुनसान इलाके मे
टहलते हुये लापता ने –
हाँ मे सिर हिला कर ..हमारा साथ दिया
चन्द्रमा से झरी रजत किरणों कों
सूरज की तपिश से बचकर भाग आयी स्वर्णिम धूप कों
वृक्षों के नीचे विश्राम कर रही शीतल छाँव कों
नदी के संग मुड़ते हर लचीले मोड़ कों
थकी हुई सडको कों
जंगल की खुली हवा मे सांस लेती चन्दन की महक कों
हवा के साथ लहलहाती फसल कों
रात मे जलती हुवी लालटेन की तरह ,..दिखायी देते
उस
प्राचीन गाँव कों ………………
सभी कों -हम दोनों का पता था
हम दोनों उन्हें जानते थे
वे सब हम दोनों कों करीब से पहचानते थे
और हम दोनों के अमर प्रेम कों भी ….
परन्तु
मनुष्यों के पास …………..
बड़े बड़े मकान थे
बड़ी बड़ी गाड़ियाँ थी
या उनसे भी बड़े बड़े सपने थे
उनके पास
प्यार करने के लीये समय नही था
अपनों से या अपने आप से मिलने के लिये
वक्त नही था
इसलिये
वक्त के पास मनुष्यों कों सच बताने के लिये
समय नही था
मै और मेरी यात्रा समय के साथ है
समय का प्रेम …..
हम दोनों के साथ है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह ! आपकी कविताओं की कमी महसूस होती थी! आप फिर आ गये। इसके लिए आभार !
ghar me naati ka jnm hua usi vajah se vyst rahaa ..vkt hi nahi mila computer ke paas jaane ka
खोरेंदर भाई , मज़ा ही आ गिया ,कविता पड़ कर , कितना अच्छा लिखते हैं आप .
bhamra ji manobal badhaane ke dhnyvaad