लघुकथा

अंकुर

आज अचानक अख़बार में आई .ऐ.एस.में टॉप सोलह में जिस लड़की का फोटो छापा भावना पंडित परिचित सा लगा ध्यान से देखा तो सब कुछ यादआ गया ये तो मेरे पड़ोसी मोहन पंडित की बेटी है |इनका परिवार बहुत ही साधारण था|

दादाजी सोहन पंडित पंडिताई से जीवन यापन करते थे , सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक, वे यदि इस समय होते तो निस्चय ही १०० वर्ष के होते ,पर बचपन में घर में घटी कुछ घटनाओं से उनकी विचार धारा में क्रांतिकारी परिवर्तन आया ,११ साल की उम्र में पिता का साया उठ गया घर में तीन विधवा ओरते जिनमे बहन बाल विधवा , भुआ जो दहेज ने लील ली, बेटी की जिंदगी तो गम में पगलाई सी ,ये ३ महिलाये अनपढ़ होने और बाल विवाह के दुष्परिणामसे अभिशप्त सी जिंदगी जी रही थी |

ये सब देख कर उनके मन में उस जमाने नव चेतना का अंकुर फूटा और उन्होंने संकल्प लिया की अब इस घर में ऐसी परिस्थितियों की पुनरावृत्ति नही होने देंगे कन्या भ्रूण बचाएंगे-पढ़ाएंगे, उनको सम्मानित जिंदगी देंगे दहेज न लेंगे न देंगे| और आज ये भावना की प्रगति उनके नव चेतना के अंकुर का ही परिणाम हे जो पेड़ के रूप में उभर कर आया है |

— गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,