बाल कविता

ट्रेन

स्टेशन पर खडी थी ट्रेन,

मुसाफिर से कितना प्रेम /
लचक -लचक बल खाती ट्रेन /
चल दी प्यारी-प्यारी ट्रेन/

चिंटू-पिंटू बैठ गये हैं/
देख के रंग -रंगीली ट्रेन/

पटरी पर चलती है ट्रेन /

कौतूहल भर देती रेल/

धीरे- धीरे रेंग रही है /

कैसी रंग- रंगीली ट्रेन/

काले-काले कपड़ों मे,

आया टिकट कलेक्टर /

चिंटू-पिंटू टिकट दिखाये,

बोला टिकट कलेक्टर,/

टिकट जेब मे रख लो बच्चो,

इसको आप सहेज /

चिंटू-पिंटू मन मुस्काये/

मोबाईल टी. सी दिख लाये/

इसके अंदर टिकट कैद है/

देख लो टी सी बाबू /

स्टेशन से चल दी ट्रेन /
धीरे -धीरे प्यारी ट्रेन /

हौले- हौले बल खाती/

आया अगला स्टेशन /

कौतूहल मन मे है छाया ,
आखिर कब
आयेगा अपना स्टेशन

राजकिशोर मिश्र ‘राज’
१९/०८/२०१५

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि