कवितापद्य साहित्य

मानवता

मानव अपनी मानवता क्यो खो चले ,
अपनी सारी वाफाएँ भूल चले,
आज हर गली गली खुन खराबा होता,
क्यो अपनी होश गवा चले ,
नही पहचान रहे है आज ,
किसी की मॉ,बहन ,
बहु, बेटीयो को,
प्यार के रिश्ते के साथ -साथ
खुन के भी रिश्ते बिगाड चले ,
दरिंदो से भरी पडी यह धरती,
क्यो दुसरो की आबरू उठा चले,
चंद खुशीयो के खातीर ,
क्यो अपना लहु बहा चले ,
मानवता के नाम पर है कातील,
क्यो मानव वे कहला गए !
………..निवेदिता चतुर्वेदी….

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “मानवता

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उत्तर कौन देगा

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