कविता

मैं जी लूँगा किसी तरह

मैं जी लूँगा किसी तरह , जिस हाल प्रभु की इच्छा हो,
केवल मुझको दिखलाने भर , मत झूठा इज़हार करो,
मुझे भरमाने की खातिर, तुम मत झूठे इकरार करो
कह दो मन में प्यार नहीं है या फिर मुझसे प्यार करो

मैं वफ़ा करूँ,तुम बेवफ़ा रहो यह मुझको तो मंज़ूर नहीं
चाहत की तुम रस्म निभाओ,या खुल कर इंकार करो
मुझसे वादा ,मिलन किसी से, यह तो कोई बात नहीं,
गैर कोई जीवन में है तो, खुल कर तुम स्वीकार करो,

वादे मुझसे, मिलन किसी से, ये  प्यार की रीत नहीं
ग़ैर कोई जीवन में है, क्यों न खुल कर स्वीकार करो,
नाम मोहब्बत का दुनिया में, ऐसे मत बदनाम करो,
रस्म निभाने की खातिर, मत कोई शिष्टाचार करो,

नाम मुहब्बत का अब तो कुछ रूखा-रूखा लगता है
सिर्फ़ दिखावे की खातिर, मत झूठे वादे बारंबार करो,
झूठी आस से अच्छा है मैं सच्ची प्यास में जी पाऊँ ,
हंस कर मेरे गले लगो , यूं न दूर से नमस्कार करो,

लगता है की अपने को अब नहीं बदल पाओगे तुम,
एक बार तुम ‘ना’ कह दो बस इतना सा उपकार करो.
— जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

3 thoughts on “मैं जी लूँगा किसी तरह

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मैं वफ़ा करूँ,तुम बेवफ़ा रहो यह मुझको तो मंज़ूर नहीं
    चाहत की तुम रस्म निभाओ,या खुल कर इंकार करो
    मुझसे वादा ,मिलन किसी से, यह तो कोई बात नहीं,
    गैर कोई जीवन में है तो, खुल कर तुम स्वीकार करो, वाह वाह ,किया बात है .

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मैं वफ़ा करूँ,तुम बेवफ़ा रहो यह मुझको तो मंज़ूर नहीं
    चाहत की तुम रस्म निभाओ,या खुल कर इंकार करो
    मुझसे वादा ,मिलन किसी से, यह तो कोई बात नहीं,
    गैर कोई जीवन में है तो, खुल कर तुम स्वीकार करो, वाह वाह ,किया बात है .

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