सामाजिक

यंत्र का उपयोग समझदारी से हो

संचार जगत में होने वाली हर नई खोज हमेशा ही रोमांचित करती है। कुछ ही समय में मोबाइल हर किसी के हाथ में आ गया, पल भर में पूरी दुनिया में किसी से भी बात कर लो। गूगल पर दुनियाभर की जानकारी पलक झपकते सामने आ जाती है। फेसबुक, व्हाट्‌सअप, स्काईप…दिल की हर धड़कन को अपने स्नेहीजन तक पहुंचा देती है…मैं जब युवा था…न तो फोन बहुत आम बात थी नहीं कोई दूसरा माध्यम…ले-देकर बस पोस्ट आफिस से चिट्ठी-पत्री…किसी की खबर का इंतजार होता…डाकिये का सुबह से इंतजार होता…आता, निकल जाता…फिर दूसरे दिन के लिए इंतजार…शनिवार होता या कोई और छुट्टी तो दो दिन…हाल-बेहाल…पर उन हालातों ने धैर्य सीखाया, इंतजार करना सीखाया…आज हर कोई जल्दबाजी में, त्वरित जवाब चाहिए…कल सुबह एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को गोलियां मार दी और खुद भी मर गया…त्वरित…बैसब्री बहुत बढ़ चुकी है…!
इंटरनेट से हर काम होने लगा है…मेरे लिए बहुत सारी चीजें बड़ी आसान हो गई, मेरी आदत है कि मैं हर बिल पहले दिन चुका देता हूं…मोबाइल, बिजली, पानी, नेट…हर बिल जमा करवाने जाता तो लंबी-लंबी कतारें, क्लर्क का मुंह ताकते रहते, कभी वह पानी पीने जाता, कभी वह किसी से हंसी-मजाक करने लगता, कभी व सू-सू करने चला जाता और कतार में खड़े-खड़े कुलबुलाते रहो…अब सारे पेमेंट आराम से बैठे बिठाये हो जाते हैं…फ्री चार्ज से चुटकियों में बिल जमा…और इनकी इतनी अच्छी सेवा है…कोई भी जानकारी लेनी हो, तकलीफ हो, पल में ईमेल का जवाब आता है…आप पूरी तरह से आश्वस्त रह सकते हैं कि आपका पेमेंट होगा ही होगा।
रुपयों का लेने-देन नेट बैकिंग से…कितना आसान हो गया…कुछ ही समय में बैंकों में भीड़ कम हो गई है…मैं छोटा था, मेरे पिता जी मुझे हर माह पास बुक देकर बैंक में रुपये जमा करवाने भेजते थे…वो मेरे लिए सबसे अधिक पीड़ादायी काम होता था…घंटों बैंक में बैठे रहना पड़ता…बैंक का हर काम हाथों से होता…रजिस्टर में एंट्री, बैंक मैनेजर के हस्ताक्षर और मैं छोटा था तो क्लर्क मेरा काम ही न करते…बड़े व्यापारी बैंक वालों को हर तरह से खुश करते तो उनके काम सबसे पहले होते…बैंक मेरे को आज भी वह ऊब याद दिला देते हैं…बैंक के साथ जुड़ी बोरियत की ऐसी यादें हैं कि आज भी बैंक जाता हूं तो कहीं अचेतन में झुरझुरी होती है…।
यांत्रिकता जीवन को आसान बना देती है, बस इसका उपयोग करना आना चाहिए…यांत्रिकता से गिरकर यांत्रिक हो गये तो भावना का संसार पीछे छूट जाता है, वह शुभ नहीं है…हो यही रहा है…यंत्र जीवन का संगी-साथी बने तो अधिक शुभ…कतारों में जाया होने वाला समय फूल खिलाने का काम आ सकता है, टहलने का आ सकता है…आराम करने के काम आ सकता है…मनुष्य काम करने के लिए नहीं बना है, आराम करने के लिए बना है, समुद्र किनारे मस्ती करने के लिए बना है, धन कमाने का काम यंत्र करेगा…इंसान बस जीवन के हर पल का सृजनात्मक मजा लेगा, यह संभव है…यदि यंत्र का उपयोग समझदारी से हो…

संतोष भारती (बनवारी)

स्वतंत्र विचारक, लेखक एवं ब्लॉगर निवासी पुणे