ग़ज़ल : मेरी आदत बन बैठा वो
ख़्वाहिश-जज्बा-सब्र-सुकूँ-चाहत बन बैठा वो.
जाने कैसे कब मेरी आदत बन बैठा वो.
जिसको बिन खोले ही मैंने पूरा पढ़ डाला,
एहसासों में डूबा ऐसा खत बन बैठा वो.
उससे जग में आज हुआ मेरा रूतबा कायम,
लगता है मेरी शानो-शौकत बन बैठा वो.
मैं थी अब तक केवल दर-दीवारों जैसी ही,
जीवन में आया तो घर की छत बन बैठा वो.
उसको पाकर कोई तमन्ना अब न रही बाकी,
ऊपरवाले की ऐसी रहमत बन बैठा वो.
कितना प्यार क्षलकता है इस कविता में. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति. आपको बहुत बधाई
तुझे पा लिया है जग पा लिया है
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है
कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है
समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता
अब समय को चुराने लगी जिंदगी है
कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती
अब सपने सजाने लगी जिंदगी है
तेरे प्यार का ये असर हो गया है
अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है
मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है
ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी)
मदन मोहन सक्सेना