सामाजिक

सुनो आहट !

जीवन हो या देश हर इकाई, हर घटना, हर व्यक्ति ,व्यवस्था का महत्त्व होता ही है। इसीलिए प्रति इकाई, प्रति व्यक्ति, प्रति व्यवस्था के प्रति सावधान रहना भी मानवीय जिम्मेदारी है । जब हम अपनी जिम्मेदारियों से चूकने लगते हैं तो अव्यवस्था फैलने लगती है उसी तरह जैसे खेतों में ठीक तरह जब देखभाल नहीं की जाती तो खर पतवार बढ़ने लगती है और ये खतवार अच्छी फसल को बर्वाद कर देती है । बिल्कुल इसी तरह जब इंसान खुद से लापरवाह हो जाता है तो चर्वी बढ़ने लगती है और यही चर्वी अंततः अनेक बीमारियों की जड़ बनती है ।इसी प्रकार जब समाज ,काल ,समय के प्रति जब लापरबाही बढ़ती है तो समाज में अव्यवस्था फैलती है ये अव्यवस्था घरों, स्कूलों और कालेजों से होती हुई देश के स्वास्थ जन जीवन पर भी असर डालती है इसीलिए प्रथम इकाई मतलब घरों पर ध्यान देने की जरूरत है अब । क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं? हम क्या सिखा रहे हैं ?खुद के बच्चों को हम क्या बना रहे हैं और हम खुद भी क्या बन जाना चाहते हैं ? ये सभी कुछ तय तो करना ही पड़ेगा ? कि नहीं!

जब ये सवाल आता है तो बड़ी ही आसानी से लोग बचते हुए जवाब देते हैं कि ये जिम्मेदारी तो बुद्धि जीबी वर्ग की है तो सवाल उठता है बुद्धिजीवी कौन है और कौन नहीं! क्या मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर बाकि सभी अपनी ज़िन्दगी मूर्खों की तरह जीते हैं ?? क्या बे अपने लिए नहीं सोचते ? क्या अपने फैसले सोच समझ कर नहीं करते !! करते हैं ! सभी अपने अपने जीवन में सारे फैसले यूँ,हीं एक दम नहीं करते ,सोच समझ कर ही करते हैं। फिर क्या देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी नहीं है हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं क्या बन रहे हैं कहीं कोई उन्हें भटका तो नहीं रहा कहीं वे भटक तो नहीं गए हैं ये जिम्मेदारी घर से ही शुरू होती है फिर जिम्मेदारी समाज की होती है उसके बाद देश की जिम्मेदारी है क्या हम इस दिन के लिए आधुनिक बने थे कि एक दिन ये अँधा अधुनिकवाद का खामोश जहर हमारी ही धमनियों में दौड़ेगा ?

जिन्हें अपने देश से प्यार नहीं है जहां वे चैन से रहते हैं मस्ती से नेट यूज़ करते हैं रेस्टॉरेंट में पार्टियां सेलिब्रेट करते हैं उन बच्चों को अपने माँ- बाप से भी प्यार नहीं ही होगा जो देश का विरोध कर सकता है वो माँ- बाप का भी करेगा !क्या ये जिम्मेदारी नहीं है हर व्यक्ति ,हर घर की कि अपने बच्चों को सही शिक्षा दें ! वे क्या सीख रहे हैं? किस से मिल रहे हैं? कहीं कोई उन्हें भटका तो नहीं रहा ये जिम्मेदारी माँ- बाप की है इसलिए अब सजग हो जाइये की हम क्या बन रहे हैं और हमारे अपने क्या बन रहे हैं । इंसान के शरीर में चर्वी को दूर किया जा सकता है लेकिन जब ये चर्वी देश की रगों में बढ़ती हैं तो पुरे पूरे देश निगल जाती है इतिहास गवाह है जब जब जिन जिन देशों में चर्वी बढ़ी है उन्हे भारी कीमत चुकानी पड़ी है !!
कहीं इस देश में भी चर्बी तो जमा नहीं हो रही है??

One thought on “सुनो आहट !

  • विजय कुमार सिंघल

    विचारशील लेख !

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