मुक्तक/दोहा

दोहे

मन में गहरे बीजिये, सत्कर्मों के भाव।
पार उतारेगी यही, भवसागर से नाव॥

ऊंचा नीचा छोडिये, हम सब हैं इन्सान॥
मालिक सभी का एक है, सब उसकी संतान॥

भेदभाव को कीजिये, अपने मन से दूर।
सबको वो ही पालता, हम सब उसके नूर॥

मन में गर विश्वास हो, पत्थर भी भगवान।
सच्ची गर हो धारणा, प्रीत चढे परवान॥

कितनी भाषा बोलियां, कितने हैं परिवेष।
सब में ईश्वर अंश है, मानव तभी विशेष॥

कलियुग की इस धूप में, चाहों गर जो छांव।
मन वाणी अरु कर्म को, रखिये संयत भाव॥

तन तो सुथरा कर लिया, धवला किया लिबास।
जब तक मन में दंभ है, मत कर सुख की आस॥

भौतिकता के वास में, सुख सपनेहु नाय।
सुख साधू से पूछिये, जो तन भस्म रमाय॥

कितने ही आकर गये, अमर भया ना कोय।
अंतिम सच बस मौत है, निश्चित सबकी होय॥

तेरा मेरा कुछ नही, सब उसके अधिकार।
सब कुछ उसके हाथ है, जीत हो या कि हार॥

बंसल तू बस कर्म कर, बाकी उसका काम।
तेरे बोये बीज का, फल देंगे श्रीराम॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.