सामाजिक

वैश्विक ई संगोष्ठी

पिछले दिनों माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में भारत सरकार की माननीय विदेशमंत्री श्रीमती सुष्मा स्वराज तथा अनेक वरिष्ठ पत्रकारों व विद्वानों की उपस्थिति में देश के कई प्रमुख समाचारपत्रों में अंग्रेजी से आयातित शब्दों के अध्ययन के आधार पर यह जानने की कोशिश की गई कि किस प्रकार मीडिया में के शब्द किस-किस प्रकार आवश्यक, अनावश्यक या जबरन हिंदी में प्रवेश कर रहे हैं या करवाए जा रहे हैं।

मैं समझता हूं कि किसी भाषा के समाचार पत्रों और चैनलों आदि का यह नैतिक दायित्व होता है कि वे अपनी भाषा को संपन्न करें और स्थापित शब्दों के अतिरिक्त नए शब्द व भाषिक प्रयोगों को भी प्रचलन में लाएँ । जहाँ आवश्यक हो वहाँ अन्य भाषाओं के शब्दों को भी स्वीकार करें । लेकिन पिछले कुछ समय से ठीक इसके विपरीत अपनी शक्ति के मद में चूर, प्रबंधन के हाथों मजबूर हो कर या कथित व्यावसायिक आवश्यकताओं के चलते हिंदी मीडिया द्वारा बड़े पैमाने पर चलते-फिरते, जीते-जागते हिंदी शब्दों को हटा कर जबरन अंग्रेजी शब्दों को ठूंसने की जो होड़ मची उसने हिंदी की शब्द-संपदा और वाक्य संरचना आदि को भारी नुकसान पहुंचाया है और यह प्रक्रिया जोरों पर है । अनेक भाषा रक्षक- भाषा भक्षक से खड़े दिखाई देते हैं। पाठक व श्रोता निरीह प्राणी की तरह सब देख – झेल रहा है । यही नहीं हिंदी के कथित कुछ समाचारपत्रों ने तो और एक कदम आगे बढ़ कर हिंदी शब्दों व संक्षिप्तियों को धड़ल्ले से रोमन लिपि में लिखना प्रारंभ कर दिया है।

इस विषय पर दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में भी आवाज उठी थी. अब इस विषय पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा विचार-विमर्श की गई है। इस पहल को आगे बढ़ाते हुए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ द्वारा इस विषय पर वैश्विक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है । विद्वजनों के संक्षिप्त विचार सादर आमंत्रित हैं।

डॉ.एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन