गीत/नवगीत

गीत : खड़े हैं वहीँ आज भी हम बाहें पसारे

जहां हम तुम मिले थे कभी सागर किनारे
देखो खिल उठे हैं वहां फूल प्यारे-प्यारे
कह गए थे जहां तुम ठहरो मैं आया
खड़े हैं वहीं आज भी हम बाहें पसारे।

पिघलता है शाम के सूरज का सोना
भर गया देखो धरा का कोना कोना
फलक पर चमक रहे हैं चंदा सितारे
खड़े हैं वहीँ आज भी हम बाहें पसारे।

थाम के जब हाथ मेरा तुमने हाथों में
चुपके से कह दिया था मेरे कानों में
आज से हम रहेंगे सदा ही तुम्हारे
खड़ेे हैं वहीँ आज भी हम बाहें पसारे।

याद है वो मंज़र था कितना सुहाना
कनखियों से मुझे देखकर मुस्कराना
और आँखों से करना वो मीठे इशारे
खड़े हैं वहीं आज भी हम बाहें पसारे।

जहाँ रेत पर तुमने लिखा था नाम हमारा
महल एक मिट्टी का बनाया था प्यारा
मिटा गईं सब कुछ लहरें विरह की तुम्हारे
खड़े हैं वहीँ आज भी हम बाहें पसारे।

तुम जो गए फिर ना आए दोबारा
अकेला है ये दिल जैसे सूना किनारा
आवाज हम तुमको दे दे कर हारे
खड़े हैं वहीँ आज भी हम बाहें पसारे।

सुमन शर्मा

नाम-सुमन शर्मा पता-554/1602,गली न0-8 पवनपुरी,आलमबाग, लखनऊ उत्तर प्रदेश। पिन न0-226005 सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें- शब्दगंगा, शब्द अनुराग सम्मान - शब्द गंगा सम्मान काव्य गौरव सम्मान Email- rajuraman99@gmail.com