कहानी

स्पीड

नन्दन बुक स्टोर, ज़ेरॉक्स, एसबीआई ए टी एम, सौम्य डेंटल हेल्थ सेंटर, दिव्या फार्मास्युटिकल- सड़क की दाईं ओर यह सब पढ़ते-पढ़ते जब सुनयना ने बाईं ओर नज़र घुमाई तो मीना फैशन्स, विकास टिम्बेर्स, मोडर्न दुग्धालय, प्रिया मैचिंग सेंटर, हिमालया टेलर्स। इस बीच कब शौर्य ने गाड़ी तेज़ कर उसका ध्यान ही नहीं गया। फिर जब दाईं ओर देखते हुए भी ऊब हुई तो उसने नज़र उठाई और बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर नज़र टिकाई। कोई प्रापर्टी की थी तो कोई नए धारावाहिक तो कहीं फैशनेबुल कपडों  के सेल की होर्डिंग थी। एक ट्राफिक पुलिस के लगाए बोर्ड पर सुनयना की नज़र जा टिकी मगर गाड़ी इतनी तेज़ थी कि बस पढ़ते ही बोर्ड पार हो गया। अंग्रेज़ी में लिखा था –“स्पीड थ्रील्स बट किल्स।“

सुनयना ने हकबका के शौर्य को चेताया।

“शौर्य! इतनी तेज़ क्यों चला रहे हो। बेटा धीमी करो।“

शौर्य के बगल में बैठी ऋचा उछल पड़ी। भला वह मौका कैसे चूकती –“मम्मा! भइय्या न उस आगेवाली सफारी से रेस करने में लगे हैं इसलिए तो कार को हवाई जहाज़ की तरह उड़ा रहे हैं।“

पीछे की सीट पर बैठी सुनयना झल्लाई – “कितनी बार कहा है शौर्य गाड़ी धीमे चलाया करो। तेज़ चलाने में कोई बहादुरी नहीं है।“

शौर्य ड्राइविंग मिरर में माँ को देखते हुए बोला “ओफ्फो मॉम! मैं धीरे ही चला रहा हूँ। ये तो नार्मल स्पीड है। आपने तेज़ चलाने वाले अभी देखे कहां हैं। आपने आधी ज़िंदगी तो मुंबई की ट्राफिक में बिताई है, अब ट्राफिक जाम की स्पीड को प्लीज़ आप नार्मल स्पीड मत बोलो। यहाँ सड़क पूरी खाली है।“

“सड़क खाली है तो क्या तू स्पाइडर मैन बन जाएगा। बीच में कोई चीज़ अचानक आ गई तो? तो क्या करेगा? कुचल के निकल लेगा या गाड़ी घुमाकर ठोक देगा कहीं।“

शौर्य पीछे मुड़ा –“ओफ्फो मॉम! गाड़ी है। प्लीज़! बैलगाड़ी नहीं।“

सुनयना चीखी –“आगे देख – आगे देख। आगे देखकर चला। बात मतकर ड्राइविंग करते समय।“

शौर्य वापस मुड़कर गाड़ी चलाते हुए बोला – “खुद ही तो बुलवा रही हो।“

“अच्छा चुप। गाड़ी चला।“

ऋचा का जी नहीं भरा बोल उठी – “बैलगाड़ी चलाओगे तो फिर भी बेहतर ही चलाओगे। एक्सीडेंट तो नहीं होगा। फार्मूला वन चलाओगे तो पक्का ठोंकोगे।“

“तू उसे क्या सुना रही है? खुद क्यूँ नहीं सीट बेल्ट लगाती?”

ऋचा ने तुरंत भूल सुधारी और अच्छी बच्ची बन गई ताकि शौर्य को चिढ़ा सके।

शौर्य तो पहले ही पिनका हुआ था। उसे लगा माँ क्या जाने ड्राइविंग के थ्रील के बारे में। ड्राइविंग मतलब एक आर्ट, एक कला। खुली सड़क पर गाड़ी दौड़ाना आसमान में पंख फैलाकर उड़ने से कम थोड़े न है। अब मॉम को कैसे समझाऊँ, कि मैनुफैक्चरिंग कंपनियां सेफटी के लिए क्या-क्या नहीं करती हैं। हर साल एक से एक बेहतरीन कार लॉन्च करती हैं। अब लेटस्ट मॉडल की बेहतरीन कार हम यह देखकर थोड़े न खरीदते हैं कि इसे बैलगाड़ी की तरह इस्तेमाल करें। ऐवें थोड़े न हम एबीएस सिस्टम और एयर बैगस का खर्चा उठाते हैं। पैसा वसूल तो तभी है जब कार को चलाने में मज़ा भी आए। जैसे आप चलाना चाहती हैं ऐसे तो नैनो भी चल सकती है।

शौर्य ख्यालों में डूबा हुआ एकदम नीरस होकर कार चला रहा था जैसे किसी ने उसे सामने रखी रसमलाई खाने से रोक दिया हो और उसे बेस्वाद सी कोई चीज़ घोंटनी पड़ रही हो।

कार के वृतांत में उलझा दिमाग उसे अपनी पहली ड्राइव के अनुभव की ओर पीछे ले गया।

शौर्य याद कर रहा था कि कॉलेज के दिनों में सभी दोस्त गाड़ी चला लेते थे। कैसे लाख कोशिशों के बाद भी वह कार चला लेने का हौंसला नहीं जुटा पा रहा था। डैड की ऑफिस की कार में जब ड्राइवर उन्हें बिठाकर ऑफिस ले जाता तो उसे लगता कि यह मामूली आदमी तक कार ड्राइव कर लेता है। मैं क्या सबसे गया गुज़रा हूँ। डैड के ऑफिस जाने के बाद उनकी पर्सनल कार तो घर पर ही पड़ी रहती और शौर्य जब-जब खिड़की से झाँकता उसे चिढ़ाया करती।

एक दिन उसने चाभी उठाई, बाल सवारें और बरमुडा में ही कार चलाने निकल गया। मगर जैसे-जैसे कार के पास जाने लगा उसकी धड़कने बढने लगी। वह कार के एक कदम पास आता तो लगता कार ही चार कदम खिसक के उसके पास आई है।

उस दिन केवल इंजन स्टार्ट कर बंद कर दिया। आगे हिम्मत ही न पड़ी। ऐसे एक दिन दिल की धक-धक के साथ उसने कार निकाली मगर वापस नहीं लगा पाया। डैड के ड्राइवर ने कार लगाई वापस।

उसने बचपन से ही एक नियम बनाया था कि अपने हर जन्मदिन पर कुछ नया शुरू करना है ताकि उसे लगे कि वह जीवन में एक कदम आगे आया है। इस जन्मदिन पर क्या करना है वह जानता था।

उसने अपने सारे डर, शंकाएं आज मुठ्ठी में भींचकर चूरा कर दीं और गाड़ी चलाकर धीरे-धीरे कॉलेज पहुंच गया। वह दिन था कि बैलगाड़ी की तरह चलाकर ले गया मगर ले तो गया।

यह याद करते हुए शौर्य के चेहरे पर एक वक्र मुस्कान फैल गई और सोचने लगा कि उस वक्त अगर माँ ने देखा होता तो बड़ा गर्व करती कि मैं तो कार को बैलगाड़ी की तरह चलाना भी जानता हूँ। शौर्य ने ड्राइविंग मिरर में माँ को देखा और मन ही मन मुस्कुरा दिया।

वह फिर कॉलेज के दिनों में पहुँच गया। अपने जन्मदिन के दिन उसने जो पंख खोले तो उसे खुले आसमानों में उड़ना आ गया। वो सीखता गया लोग उसे सिखाते गए। किस ने क्या-क्या नहीं सिखाया। औरंगाबाद वाले मामा जी ने सिखाया कि कैसे ढलान पर खड़ी गाड़ी को बिना आगे या पीछे ठोंके स्टार्ट किया जा सके। एक जूनियर से सीखा कि कैसे एकदम कार के साइज़ की पार्किंग में गाड़ी बराबर पार्क कर सकते हैं। फिर तो वह गाड़ी लेकर कहाँ-कहाँ नहीं गया। क्या लॉन्ग ड्राइव और क्या शॉट ड्राइव हर चीज़ उसके लिए हर्ष का चर्मोत्कर्ष हुआ करती थी। कभी-कभी तो भ्रम होता था कि जैसे उसने ड्राइविंग के लिए ही जन्म लिया है। और तो और उसे याद आता है कि कैसे वह कॉलेज की उस इकलौती शानदार पजेरो को रेस में हराया करता था जिसका उससे पहले कॉलेज में एकछत्र राज था।

कॉलेज के उन चुहलबाज़ियों में लगी रेसों को जीतने में भी उसे मज़ा आता था। पजेरो वाले भी तो उसी के दोस्त थे। मगर जीत तो जीत होती है। जीत से मीठा कुछ भी नहीं

कॉलेज छोड़ने के बाद भी जब भी वे दोस्त सड़क पर ड्राइव करते मिल जाते तो बिना रेस किए छूटते नहीं। लो कितनी लंबी उमर है उन दोस्तों की कि शौर्य को वो फिर नज़र आ गए।

शौर्य ने गाड़ी तेज़ कर उनके पास पहुँचना चाहा मगर एक्सलरेटर पर पाँव दबते ही ऋचा चिल्लाई –“देखो मम्मी! फिर भगा रहा है।“

“ओफ्फो! शौर्य!”

शौर्य ने मुंह टेढ़ा कर के एकस्लरेटर से पाँव ही हटा लिया।

फ्लाई ओवर से नीचे उतरकर जब उसने गाड़ी सर्विसे लेन के लिए बढ़ाई तो देखा कि वो पजेरो एक सर्विस स्टेशन पर खड़ी थी और उसके दोस्त सर्विसिंग वाले से बात कर रहे थे। ख़ैर उसने देखकर अनदेखा कर दिया और अपनी गली में मुड़ गया।

जिस संगीत महोत्सव को बीच में छोड़कर शौर्य सुनयना और ऋचा को घर छोड़ने आया था अब उसमें उसे वापस जाना था मगर ज़रा सुस्ताने के लिए तीनों डाइनिंग टेबल के पास बैठ गए।

“क्या बढ़िया कार्यक्रम आयोजित किया था न! मेरी सेहत साथ देती तो मैं थोड़ा और बैठती।“

“हां। मैं तो वापस जा रहा हूँ। सब दोस्त मेरे वही हैं।“

“मैं भी चलूँ?”

“तू…तू क्यों जाएगी? और जाना ही था तो हमारे साथ वापस क्यों लौटी? वहीं रह जाती? आख़िर मैं वापस आता तो लेते आता?”

“हम्म….मेरी भी सारी दोस्त वहाँ है। मैंने सोचा था मैं भी घर आकर रेस्ट करूँगी मम्मा के साथ मगर अब मुझे बोर लग रहा है घर देखकर। मैं भी वहीं जाऊँगी।“

मैं नहीं ले जाऊँगा।“

“प्लीज़…..प्लीज़…..प्लीज़”

“ले जा ना शौर्य इसे भी। क्या करेगी घर पर अकेली बैठकर। दोस्तों के साथ मन लग जाएगा।“

“मगर एक शर्त है।“

“चुपचाप चलेगी और चुपचाप वापस आएगी। जब मैं ड्राइव कर रहा हूँगा तो कोई चूँ-चपड़ नहीं।“

“डन!”

शौर्य अपना पानी का ग्लास खत्म करके उठा तो सुनयना ने चेतावनी दी –“बेटा गाड़ी ठीक से चलाना।“

“आपको क्या लगता है माँ मुझे गाड़ी चलानी नहीं आती।“

“मैंने कब कहा ऐसा। तुझे आती है और ज़रूरत से ज़्यादा अच्छी तरह से आती है।“

“नहीं मॉम आप कुछ नहीं जानती। आपको अंदाज़ा नहीं है माँ मैं हर स्पीड पर हर तरह के ट्राफिक में हर तरह की गाड़ी को सही तरीके बैलेंस करना जानता हूँ।“

“बस यही तो डर है।“

“क्या? कि मुझे गाड़ी ज्यादा अच्छी तरह से चलानी आती हैं।“

“हाँ बिल्कुल ठीक। यही बात है।“

शौर्य ने आश्चर्य से कहा –“हें…ये क्या बात हुई?”

“बेटा हमेशा अच्छा तैराक ही डूबता है। खराब तैराक तो डर-डर कर तैरता है और संभल कर रहता है। कुछ अनहोनी होने नहीं देता। अच्छा तैराक ही उल्टी-सीधी लहरों से जोखिम लेने निकल पड़ता है। और मारा जाता है।“

“डोंट वरी मॉम। मैं गाड़ी सेफ चलाऊँगा और ऋचा को सेफ ही वापस ले आऊँग़ा।“

माँ मुस्कुरा दी। पर्ल की ब्रेस्लेट वाली खींसी नसों की कलाइयों को हवा में हिलाकर दोनों को बाय किया।

शौर्य ने धीरे से गाड़ी बढ़ाई और सर्विस लेन से लेते हुए जब फ्लाइवोर के नीचे पहुँचा तो अनायास ही सर्विस स्टेशन की तरफ नज़र चली गई। पजेरो ने भी सर्विस स्टेशन से निकलना शुरू कर दिया था।

शौर्य अब फ्लाई ओवर पर था। पर साइड मिरर में स्पीड पकड़ रही पजेरो लगातार उसकी नज़र में थी। फिर वह बगल से गुज़री। पजेरो के उसके दोस्तों ने उसे वेव किया। वह हल्के से मुस्कुरा दिया। पजेरो आगे निकल गई।

शौर्य ने पजेरो को न देखने का प्रयास करते हुए अपनी स्पीड पर संयम बनाए रखा। थोड़ी देर में पजेरो नज़र नहीं आ रही थी।

शौर्य ने इत्मीनान की सांस ली और बेमन से गाड़ी चलाता रहा। कि देखा पजेरो ने अपनी स्पीड धीमी कर दी है। धीमी होती-होती वह उसके पीछे चली गई। फिर तेज़ी से उसके पास तक पहुँची। दोस्तों ने इशारा किया रेस के लिए। वह बस मुस्कुरा दिया।

दोस्तों को यकीन नहीं हुआ कि यह वही कॉलेज वाला शौर्य है जो ज़रा सा उकसाने पर हर बाज़ी लड़ जाता था। उन्होंने तीन-चार बार यह हरकत दुहराई और उसे रेस में खींच लाने में असफल रहे।

फिर उसके दोस्तों ने आखिरी चाल चली। किन्नरों की तरह ताली बजाकर उसे दिखाने लगे। यह शौर्य के लिए हद थी। उसे ललकारा जा रहा था और रणक्षेत्र में न उतरने पर उसके पौरूष पर सवाल उठाया जा रहा था।

शौर्य ने गियर को कस के थाम लिया और मन ही मन कहा कि इन्हें अब दिखाना ही पड़ेगा। गियर बढ़ते गए, स्पीड बढ़ती गई और शौर्य का अवेश बढ़ता गया। हर एक गाड़ी को जैसे छलांग लगा-लगाकर पार करता हुआ वह आगे बढ़ रहा था। पजेरो भी आगे और आगे बढ़ रही थी।

सड़क पर चल रही गाड़ियों को किसी विडीयो गेम की नकली गाड़ी समझकर वह पीछे छोड़ता जा रहा था। गाड़ी बहुत स्पीड में थी। ऋचा डरी हुई थी। रह-रहकर चेहरा छुपा ले रही थी कि अब ठुकी तब ठुकी। मगर कुछ बोल नहीं रही थी क्योंकि एक तो उसे अपनी शर्त याद थी दूसरी डर के मारे बोल नहीं फूट रहे थे। मगर शौर्य अपनी कही बात भूल चुका था।

तभी पजेरो ने हल्ला मचाते हुए उसे पीछे कर दिया। उसने आगे गाडियों की पोजीशन आंकी और आगे बढ़ने के लिए रास्ता ढूँढने लगा।

एक मारूती 800 की बाईं ओर सड़क के साथ चल रही आधे फुट की दीवार और उस मारूति के बीच बस इतनी ही जगह थी कि वह कार निकाल ले जाए। मगर उसने हॉर्न नहीं दिया कि कहीं मारूती दाएं खिसने की बजाए और बाएं न खिसक जाए और गाड़ी चुपचाप तेज़ कर निकाल लेनी चाही।

मगर उसे पता नहीं था कि मारूति का ड्राइवर पहले ही डरा हुआ सा उसकी हरकतें साइड व्यू में देख रहा था। उसे भी लगा कि गाड़ी दाएं से निकलेगी और ठीक जैसे ही शौर्य ने गाड़ी बाईं और से निकालनी चाही उस नौसिखिए तैराक ने मारूति भी बाईं ओर कर दी जिससे शौर्य को अपनी गाड़ी फ्लाईओवर की दीवार से दूर तक घसीटते हुए ले जाना पड़ा और मारूति के पार होते ही उसने खुली सड़क पर गाड़ी एकदम दाएं घुमाई।

एकदम दाएं का झटका लगा तो संभलने के लिए ऋचा बाईं ओर हुई। बाईं ओर हुई तो इतना हुई कि दरवाज़े से सट गई। दरवाज़े से सटी तो सटी मगर देखते ही देखते नज़ारा एकदम बदल गया।

उखड़े दरवाज़े के साथ ऋचा सडक पर लुढक रही थी और गोल-गोल घुमता हुआ उसका शरीर सड़क के एकदम बाएं कोने पर पड़े पत्थर से टकरा गया जो थोड़ी देर छटपटाया और सुन्न होगया।

टूटे दरवाज़े के उस पार बैठा शौर्य भी यह सब देखकर सुन्न हो गया था। आस पास के लोग इकठ्ठा हो गए थे। पजेरो के दोस्त आकर ऋचा को उठाने लगे और शौर्य भी इस आघात से बाहर आने की चेष्टा में कहीं का पांव कहीं धरते हुए ऋचा के पास तक पहुंचा।

वहां खड़े कई लोगों ने ये तमाशा देखा, उस लड़की के स्तबध भाई को देखा उस लड़की को देखा जिसका माथा फट गया था, उसे ले जाते हुए देखा मगर किसी नहीं देखा तो वह ट्राफिक पुलिस का बोर्ड जो ठीक उनके सर के बहुत ऊपर लगा हुआ था – स्पीड थ्रिल्स, बट किल्स

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com

3 thoughts on “स्पीड

  • हा हा ,जवानी में संभल जाएँ तो जवानी किस को कहें ,इस उम्र में who cares about ” speed can kill “, कहानी प्रेरक है .

    • नीतू सिंह

      जी सर! मगर Dare के साथ Care नहीं होगा तो फिर यही होगा।

      • दुःख की बात तो यही है किः इस उम्र में परीणाम के बारे में कुछ ही युवा सोचते हैं . यहाँ मोटरवे पर ७० मील प्रति घंटा की स्पीड के बोर्ड जगह जगह लग्गे हुए हैं लेकिन लोग ८० ९० तो आम करते हैं ,कई तो सौ मील भी करते हैं ,सपीद कैमरा लगे हुए हैं लेकिन हुशिआर लोगों को स्पीड कैमरों की जगह मालूम होती है , इन के नज़दीक आ कर स्पीड कम कर देते हैं ,इस को पार करते ही एक्सीलरेटर दबा देते हैं हैं ,पकडे भी जाते हैं ,फिर भी हटते नहीं .फिर भी आप जैसी प्रेरक कहानिओं से किसी एक पर भी असर हो जाए तो कहानी तो कामयाब होगी ही .

Comments are closed.