कविता

इल्तज़ा

सुना है बहुत बड़े आदमी बन गए हो
इलाहाबाद में जाकर बस गए हो
अपने शब्दों में बयां करूं तो
ईद का चांद बन गए हो
ईद का चांद भी साल में
दो बार आया करता है
हमारा दिल तो तुम्हारे दीदार को
तरसता रहता है
कभी तो आया करो
मुखड़ा दिखाया करो
और नहीं तो
ट्विटर पर ही
कुछ ट्विट कर लिया करो
फेसबुक पर ही
नए-ताज़े फोटोज़
डाल दिया करो
कभी स्काईप पर ही
दिखा-दिखाया करो
कभी मोबाईल पर ही
बात कर लिया करो
इस बार ईद के चांद से
करूंगी यही इल्तज़ा
मेरा यह संदेशा
तुम तक अवश्य पहुंचाए
ताकि मुझे भी
जीने का मज़ा आए

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244