कहानी

चित्रकार

चित्रकार तो वोह सकूल के दिनों से ही था लेकिन उस की इस कला को जानने वाला ही कोई नहीं था। यूं भी राजू गरीब माँ का इकलौता बेटा ही था, पिता तो बचपन में ही ऐसी दुनीआं में चले गिया था, यहाँ से कोई वापस नहीं आता। इससे भी बुरी बात थी, उसका पढ़ाई में भी बहुत कमज़ोर होना। खादी के साधारण कपडे और बिखरे हुए बालों के कारण उसमें कमतरी का अहसास भी था। मास्टर जी उससे हमेशा चिढ़ते थे। मास्टरों का अपने शिष्यों को मुर्गा बनाना या सोटी से पीटना तो उनका अधिकार ही समझा जाता था और इस पीट से शायद ही कोई शिष्य बच पाया हो लेकिन राजू को पीटना तो मास्टर जी के लिए एक आम बात ही हो गई थी। मास्टर जी भी क्या करते, राजू को जैसे पढ़ाई में कोई रूचि ही ना हो , बस स्लेट पर कोई ना कोई किसी जानवर की तस्वीर ही बनाते रहना उस की आदत थी और यही बात थी उस का रोज़ मुर्गा बनना। किसी बात को लेकर एक दिन मास्टर जी ने राजू को बहुत पीटा और इसके बाद वोह कभी स्कूल नहीं आया।

माँ उसे किसी शहर ले गई थी और शहर में ही उस की कला को चार चाँद लग्गे। बड़ा हुआ, शादी हुई और बच्चे भी हुए। चित्रकार तो वोह बन ही गया था लेकिन इस चित्रकारी से घर का खर्च निकालना एक टेहड़ी खीर थी। बच्चे स्कूल जाते थे लेकिन जितनी तस्वीरें वोह बनाता, उनको बेचना इतना आसान ना होता और बेच भी लेता तो इतने पैसे ना मिलते। घर का खर्च मुश्किल से चलता। पति पत्नी में झगड़ा होता। पत्नी उसे कोई और काम करने को कहती, वोह कोई काम ढून्ढ भी लेता लेकिन उसका मन उस काम में लगता नहीं था और कोई नई तस्वीर बनाने के लिए उस के पास वक्त भी नहीं बचता था। कभी कभी राजू उदास हो जाता कि उसकी कला को कोई पहचानता ही नहीं था। जब कभी वोह बहुत उदास होता तो शहर से दूर कहीं खेतों की ओर चले जाता, यहां आकर उस को कुछ सकून मिलता। कभी कभी किसी किसान से मुलाकात हो जाती। इन लोगों से मिल कर उसे बहुत ख़ुशी मिलती। रोज़ रोज़ आना तो उसके लिए संभव नहीं था लेकिन कभी ज़िआदा उदास होता तो इस ओर चला आता।

ऐसे ही एक शाम को वोह इस ओर आ गया। सैर करते करते कुछ अँधेरा होने लगा था। अचानक देखा, एक आदमी बृक्ष के ऊपर रस्सा बाँध रहा था। राजू ने देखा, लेकिन कोई ख़ास धियान नहीं दिया और आगे बढ़ने लगा। अपने धियान वोह चल रहा था। अचानक उसने पीछे गर्दन घुमा कर बृक्ष की ओर देखा तो उसके होश उड़ गए, वोह किसान अपने गले में फंदा डाल रहा था। राजू बिजली की तेज़ी से उस ओर भागा और उस किसान को पकड़ लिया और गले से रस्सा निकालने की कोशिश करने लगा। मुझे छोड़ दो ! मुझे छोड़ दो, किसान चीखे जा रहा था लेकिन राजू ने फंदा निकाल ही दिया। किसान रोने लगा था और बोल रहा था कि जीने के लिए अब उस के पास कुछ नहीं बचा था, उस के सर पर इतना क़र्ज़ चढ़ गया था कि वोह इस जनम में अदा नहीं कर सकता था। राजू ने किसान को बिठा कर पुछा कि उसके कितने बच्चे थे तो उसने तीन बच्चे बताया था। राजू ने उसको समझाया कि वोह तो आत्महतिया कर के सुर्खरू हो जाएगा लेकिन बीवी और तीन बच्चे किस के सहारे वोह छोड़ कर जा रहा था। राजू ने यह भी कहा कि वोह भी ऐसी ही स्थिति से जूझ रहा था लेकिन आत्महत्या के बारे में तो वोह सोच भी नहीं सकता था। समझा बुझा कर राजू उस किसान को घर छोड़ आया। अपने घर को वापस आते समय वोह सोचता और घबराया हुआ आ रहा था।

सारी रात वोह सोचता रहा कि अगर वोह किसान आत्महत्या कर लेता तो कितनी ज़िंदगियाँ तबाह हो जातीं। इसी सोच में कई दिन हो गए और कोई चित्र बनाने को उस का मन नहीं था। फिर अचानक कुछ दिमाग में आया और उस ने उस किसान का चित्र बनाना शुरू कर दिया। कई दिन उस को यह चित्र बनाने में लग गए। एक किसान बृक्ष से लटकते हुए रस्से को गले में डाले, खेतों में बारिश के पानी से डूबी हुई फसल की ओर उदासीन नज़रों से देख रहा था। यह चित्र देख देखकर वोह रोता रहा। यह चित्र उस से देखा नहीं जाता था। उस ने जल्दी से जल्दी किसी भी कीमत पर इस को बेचने का मन बना लिया। सड़क पर बैठा वोह सारे चित्र हमेशा की तरह बेच रहा था। जो भी इस चित्र को देखता दुःख भरी आवाज़ में कुछ शब्द बोल कर आगे चले जाता लेकिन कोई ग्राहक इसको खरीदने के लिए तैयार ना होता।

शाम हो गई थी। सड़क पर जाते जाते एक बिदेसी मर्द और औरत आकर इसी तस्वीर को देखने लगे। कितनी देर देखने के बाद वोह मर्द बोला,” कितनी कीमत लेगा, इस पेंटिंग की ?”, साहब जो मर्ज़ी दे दो राजू बोला। एक लाख रूपी लेगा ? ,सुन कर राजू का मुंह खुला ही रह गया। एक लाख दस हज़ार से ज़िआदा नहीं देगा, बोलो मंज़ूर है ? राजू के मुंह से कोई बात नहीं निकल रही थी, उसने सिर्फ सर हिला कर रजामंदी ज़ाहर कर दी। तस्वीरें और एक लाख दस हज़ार रूपए लेकर जब वोह घर जा रहा था तो उस दिमाग में हज़ारों विचार आ रहे थे आखर में इस नतीजे पर पहुंचा कि इन पैसों का हकदार वोह खुद नहीं था बल्कि वोह किसान ही था।

7 thoughts on “चित्रकार

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, रामू ने तो बड़े-बड़े दानिशमंदों को भी मात कर दिया. आपने इंसानियत से सराबोर रामू का बहुत सुंदर चित्रण किया है. एक नायाब और सार्थक रचना के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन , आज ही आप का कॉमेंट देखा ,खिमा का याचक हूँ किः १५ दिन बाद देखा . कहानी आप को अछि लगी, इस से मुझे आगे लिखने की प्रेरणा मिली है .बहुत बहुत धन्यवाद .

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईजी ! क्या खूबी से आपने राजू का चरित्र चित्रण किया है । राजू एक बढ़िया चित्रकार होने के साथ ही इंसानियत से भरा एक सहृदय इंसान था । दूसरों के दुःख से दुखी होना ही इंसानियत है ।आज तो लोग अपने दुःख से नहीं परिचितों के सुख से ज्यादा दुखी होते हैं । एक प्रेरक प्रसंग वर्णन के लिए आपका धन्यवाद ।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      राजकुमार भाई , आप ने सही कहा किः बहुत से लोग दूसरों के सुख देख नहीं सकते . राजू ने जो किया ,वोह है तो एक कलपित कहानी लेकिन मुझे इस को लिखने में एक ऐसी संतुष्टी की भावना मिली किः इस को बताया नहीं जा सकता . कहानी आप को अछि लगी ,आप का बहुत बहुत धन्यवाद .

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईजी ! क्या खूबी से आपने राजू का चरित्र चित्रण किया है । राजू एक बढ़िया चित्रकार होने के साथ ही इंसानियत से भरा एक सहृदय इंसान था । दूसरों के दुःख से दुखी होना ही इंसानियत है ।आज तो लोग अपने दुःख से नहीं परिचितों के सुख से ज्यादा दुखी होते हैं । एक प्रेरक प्रसंग वर्णन के लिए आपका धन्यवाद ।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी, भाई साहब !

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद , विजय भाई .

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