कुण्डली/छंद

कृष्ण विरह(मनहरण कवित्त)

जब ते निहारा तोरा,चंदा सा सुहाना मुख,
मोरे जियरा में जाने, कैसी लगी आग है |
ऐसी में मगन भई, लोकलाज भूल गई,
चित्तचोर मोहन से, लगी मोरी लाग है |
तुम तो निर्मोही बन, मोह गये मेरो मन,
पल-पल तड़पावे, कैसो अनुराग है ?
विरह में जल रही, चैन एक पल नहीं,
हाय रे विधाता कैसे? फूटे मोरे भाग है |

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com

One thought on “कृष्ण विरह(मनहरण कवित्त)

  • राजकुमार कांदु

    बहुत ही सुन्दर रचना । शाबाश !

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