धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

देश-विदेश में श्री कृष्ण के अनुरागी

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग-अलग तरह से मनाया जाता है.

1. जन्माष्टमी, वृन्दावन और मथुरा का सबसे बड़ा त्योहार है. यहां जगह-जगह पर रासलीला का आयोजन किया जाता है, जो कृष्ण के बाल्यकाल पर आधारित होती है. यह एक प्रकार का नृत्य होता है, जिसे कृष्ण के चारों तरफ रहने वाली गोपियां परफॉर्म करती हैं. वृन्दावन और मथुरा में जन्माष्टमी की तैयारी एक सप्ताह पहले ही शुरु हो जाती है. यहां के लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं और रात को 12 बजे के बाद ही कुछ खाते हैं. इसके पीछे यह मान्यता है कि रात 12 बजे ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था.

2. महाराष्ट्र में भी इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन वहां इसे दही-हांडी के नाम से जाना जाता है. इस दिन पूरे शहर में जगह-जगह हांडी फोड़ने के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इसमें युवा लड़के झुंड बनाकर दही से भरी हांडी को फोड़ने की कोशिश करते हैं. साथ ही गोविन्दा के नारे भी लगाए जाते हैं, जो कि कृष्ण का ही एक नाम है. हांडी फोड़ने वाली टीम को इनाम भी दिया जाता है.

3. भारत के पूर्वी राज्यों में भी इस त्योहार को पूरे जोर-शोर के साथ मनाया जाता है. मणिपुर में इसे कृष्ण-जन्म के नाम से जाना जाता है. इस इलाके के लोग कृष्ण अनुयायी होते हैं और उनके लिए इस त्योहार का खास महत्व होता है. यहां इन त्योहारों को मनाने के लिए गोविन्दाजी मन्दिर और इस्कॉन टेंपल प्रमुख स्थान हैं.

4. राजस्थान के झूंझूनू में हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह में जन्माष्टमी मेले का आयोजन होता है. जन्माष्टमी के मौके पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं, ठीक उसी तरह यहां भी अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में भजन गायक दूलजी राणा परिवार के कलाकार विख्यात श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिका की प्रस्तुति देकर रतजगा की परम्परा को जीवंत बनाते हैं.

5. आपको जानकर हैरानी होगी मगर पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. कराची में बहुत ही प्राचीन मंदिर श्री स्वामीनारायण मंदिर है जहां इस त्योहार को बड़े स्तर पर मनाया जाता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

9 thoughts on “देश-विदेश में श्री कृष्ण के अनुरागी

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    बहन जी प्रणाम आपसे बात करने की बहुत इच्छा है अगर उचित समझें तब मेरे मेल आई डी मोबाईल नंबर भेज दें सादर निवेदन
    rajkishormishra80@gmail.com /9323068389

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकिशोर भाई जी, मोबाइल नम्बर ज़रूर भेज देंगे.

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    बहन जी प्रणाम बहुत सुंदर रचना

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकिशोर भाई जी, एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , इल्ग्ग इल्ग्ग ढंगों से देश के प्रान्तों में जन्माष्टमी को मनाए जाने की प्रथाएं जान कर बहुत अच्छा लगा . मेरे बचपन के दिनों में तो रात को रास होती थी ,जिस में कृष्ण जी का रोल एक बालक करता था और गोपिओं से सवाल जवाब होते थे, जिन का कुछ कुछ जीकर मैंने अपनी कहानी में भी किया है . यह फैस्टिव बहुत कलरफुल होता है जिस को सभी धर्मों के लोग मनाते हैं .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. रासलीला का कार्यक्रन बहुत कलरफुल होता है. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. रासलीला का कार्यक्रन बहुत कलरफुल होता है. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • राजकुमार कांदु

    श्रद्धेय बहनजी ! देश के विभिन्न हिस्सों में जन्माष्टमी का उत्सव भिन्न भिन्न रूपों में और नामों से मनाया जाता है । इसी के साथ राजस्थान के एक दरगाह में भी इस उत्सव को रतजगा करके गीतों और भजनों से मनाया जाता है । यह ज्ञानवर्धक लगा ।
    हमारे एक मुस्लिम मित्र जिस पंथ को मानते हैं उसके अनुयायी अल्लाह को श्रीकृष्ण के रूप में भक्तिभाव से पूजते हैं । ये नमाज वगैरह नहीं पढ़ते । रोजे नहीं रखते । शायद राजस्थान स्थित दरगाह भी इसी पंथ से सम्बंधित हो । एक और ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपका ह्रदय से शुक्रिया ।

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपको रचना ज्ञानवर्द्धक लगी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ. हो सकता है, आपके मित्र व दरगाह का पंथ एक ही हो. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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