मुक्तक/दोहा

“दोहा”

14494660_945493348888452_6486012119544624775_n

रंग विरंगी मछलियाँ, जार पड़ी बेजार
शीशे का जलमहल है, हवा बुलबला दार।।
काली नीली पितवरण, लाली है दमदार
सोनवर्षी है सिकुड़ी, दाना दाना भार।।
जल की रानी जलपरी, कैद हुई जल साथ
जाल बिनता मछुवारा, ताना बाना हाथ।।
जीवन सबका पनियरा, मछली मोह शिकार
देख नजर इक पैर पर, बकुला भगत बिचार।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ